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होस्नी मुबारक, कर्नल गद्दाफी और अब बशर असद को छोड़ना पड़ी गद्दी

कर्नल गद्दाफी, बशर अल असद और होस्नी मुबारक

नई दिल्ली. वर्ष 2011 अरब जगत के देशों के लिये भारी उथल-पुथल देखने को मिल रही है। ट्यूनीशिया में एक सब्जी बेचने वाले के आत्मदाह से भड़की आग में इस क्षेत्र के कई देश झुलस गये। आलम यह था कि ट्यूनीशिया से निकली विद्रोह की यह चिन्गारी मिस़्, यमन, लीबिया और सीरिया सहित कई देशों तक फैली है। विद्रोह की इस चिंगारी को जैस्मीन क्रांति या फिर अरब स्प्रिंग कहा गया है। इस क्रांति ने कई तानाशाहों की चूल्हें हिला दी और उन्हें गद्दी से उतर फेंका। इस फेहरिस्त में पहला नाम मिस्त्र के तानाशाह होस्नी मुबारक का है। होस्नी मुबारक 1981 में अनवर सदत की हत्या के बाद मिस्त्र के राष्ट्रपति बने थे। वर्ष 1981 से 2011 तक मिस्त्र में एक छत्र राज करते रहें। लेकिन 2011 में ट्यूनीशिया से निकली विद्रोह की चिंगारी में उन्हें गद्दी से उतरना पड़ा था।
जब होस्नी को छोड़नी पड़ी थी गद्दी
जनवरी 2011 में मिस्त्र की राजधानी काहिरा के तहरीर स्क्वायर में हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी एकत्रित हो गये। जिन्होंने राजनीतिक सुधारों और मुबारक के इस्तीफ की मांग की। सोशल मीडिया और इंटरनेट के माध्यम सेआन्दोलन को व्यापक समर्थन मिला। जिसने सरकार के दमन के प्रयासों को चुनौती दी। होस्नी मुबारक सरकार ने शुरूआत में इन विरोधों को दबाने की कोशिश की। लेकिन जनता के भारी समर्थन और वैश्विक दबाव के सामने उनकी रणनीति फैल रहीं। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प् के बावजूद प्रदर्शनकारियों ने अपनी मांगों को जारी रखा। लेकिन 18 दिनों तक हुए हिंसक प्रदर्शन के बाद होस्नी मुबारक को अपना पद छोड़कर सत्ता सेना के हाथ में चली गयी। यह पहली बार था जब मिडिल ईस्ट में सोशल मीडिया से शुरू होकर सड़क तक पहुंचे। एक आन्दोलन ने किसी निरंकुश शासक को सत्ता से उखाड़ फेंका था। इस प्रदर्शन में 239 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गयी थी।

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