DRDE में 3 दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन
ग्वालियर रक्षा अनुसंधान तथा विकास स्थापना ग्वालियर में 16 से 18 नवंबर के दौरान Chem-bio defence : futuristic tools and technology (रसायन-जैव रक्षा : भविष्योन्मुख उपकरण एवं प्रौद्योगिकी) विषय पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन के तीसरे दिन आयोजित वैज्ञानिक सत्रों में कुल 03 आमंत्रित व्याख्यान हुए।
इनमें सत्राध्यक्ष की भूमिका 4 सत्रों की अध्यक्षता क्रमश: DRDE के पूर्व निदेशक डॉ के शेखर, प्रोफेसर एन. गोपालन, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ़ तमिलनाडु, तिरुवरूर एवं डॉ विपुल गुप्ता, महानिदेशक (जैवविज्ञान) कार्यालय, दिल्ली ने की।
प्रथम व्याख्यान में आर्म्ड फोर्सज मेडिकल कॉलेज पुणे से पधारे लेफ्टिनेंट कर्नल डॉ एस. के. सिंह ने विभिन्न श्रेणी के रासायनिक युद्धक अभिकारकों का परिचय दिया एवं उनकी विभीषिका से निपटने में चिकित्सीय उपायों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जैविक या रासायनिक अभिकारक से प्रभावित होने पर मरीज या प्रभावित व्यक्ति को किस तरह की तात्कालिक चिकित्सीय सहायता आवश्यक होती है।
दूसरे व्याख्यान में R&D (इंजीनियर्स) पुणे से पधारेसी. के. गौतम, वैज्ञानिक जी ने सी.बी.आर.एन. आकस्मिकता की स्थिति में सामूहिक बचाव शेल्टर की उपयोगिता एवं इस क्षेत्र में हुई प्रगति से श्रोताओं को अवगत कराया। उन्होंने बताया कि रासायनिक हमले की स्थिति में इन बचाव शेल्टर्स का इस्तेमाल आबादी और सैनिकों की सुरक्षा के लिए किया जा सकता है। तीसरे व्याख्यान में DBT नई दिल्ली से पधारे डॉ नितिन कुमार जैन ने इंडियन बायोसेफ्टी रेगुलेटरी फ्रेमवर्क पर अपना व्याख्यान दिया।
कार्यक्रम के समापन सत्र को संबोधित करते हुए DRDE ग्वालियर के निदेशक डॉक्टर मनमोहन परीडा ने इस बात को आवश्यकता जताई कि रसायन – जैव रक्षा एवं वैज्ञानिक अनुसंधान क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न संस्थानों के शोधकर्ताओं के समागम से जहां हम आधुनिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अभिनव विचारों से अवगत होते हैं, वहीं दूसरी ओर हमें साथ मिलकर काम करने की प्रेरणा प्राप्त होती है। एक दूसरे की विशेषज्ञता का लाभ उठाकर हम देश को रसायन-जैव रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर ले जा सकते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि सम्मेलन में शामिल प्रतिभागियों ने यह आग्रह किया है कि इस स्तर का सम्मेलन प्रत्येक वर्ष आयोजित होना चाहिए।
कार्यक्रम के अंत में आयोजन सचिव डॉ ए. के. गोयल ने बताया कि वर्तमान युग अकेले काम करने का नहीं है बल्कि एक दिशा में संगठित प्रयास करने का युग है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के अलावा, सशस्त्र सेनायें, इंडस्ट्रीज, अन्य वैज्ञानिक संस्थान, निजी उद्यम एवं विश्वविद्यालय यदि अपने-अपने शोध कार्य आपस में साझा करें और एक दिशा में कार्य करें तो देश को इस क्षेत्र में तेजी से निर्भरता की ओर ले जाया जा सकता है। कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों को प्रतिभागिता प्रमाण पत्र एवं स्मृति चिन्ह प्रदान किए गए। इन वैज्ञानिक सत्रों का संचालन डॉक्टर एस. आई. आलम ने किया एवं कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद प्रस्ताव डॉ मुकेश कुमार मेघवंशी ने दिया।