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SC-ST एक्ट और रेप की FIR हाईकोर्ट ने की रद्द, शिकायत बदले की भावना की जाये तो सच्चाई को परखना चाहिये

ग्वालियर. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने गैंगरेप और एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया और न्यायालय ने इस मामले को कानूनी प्रक्रिया का दुरूप्योग और व्यक्तिगत प्रतिशोध का उदाहरण बताया है। अदालत ने कहा है कि जब शिकायत बदले की भावना से की जाये और सबूत विरोधाभासी हों तो एफआईआर के शब्दों पर विश्वास करने के बजाय सच्चाई को परखना चाहिये। यह मामला वास्तविक अपराध का नहीं है। बल्कि कानूनी प्रक्रिया के दुरूपयोग का है। न्यायालय ने टिप्पणी की है कि जब स्वयं शिकायतकर्त्ता और उसका पति गंभीर अपराधों में आरोपाी हों तो उनकी विश्वसनीयता औरे अधिक संदिग्ध हो जाती है।
मामला गुना के कैंट थाना इलाके का है
यह मामला गुना जिले के कैंट थाना इलाके से जुड़ा हुआ है। जहां 2024 में आनंदसिंह लोधा और बृजेन्द्र शर्मा के खिलाफ गैंगरेप, धमकी देने और एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था। एफआईआर के मुताबिक पीडि़ता के साथ वर्ष 2021-22 के बीच बार-बार दुष्कर्म किया गया और जाति सूचक गालियां दी गयी। हालांकि इस गंभीर आरोप को दर्ज कराने में 3 साल से ज्यादा की देरी हुई है। जिसका कोई संतोषजनक वजह शिकायतकर्त्ता की ओर से पेश नहीं किया गया।
सबूतों की प्रामाणिकता पर भी सवाल
अदालत ने केस डायरी और दस्तावेजों का अवलोकन करते हुए पाया कि 2023 में दर्ज पहले के एक केस में शिकायतकर्ता ने आनंद सिंह लोधा का कहीं उल्लेख नहीं किया था। जांच में मिले वीडियो और फोटोग्राफ को अदालत ने संदिग्ध और कृत्रिम माना, क्योंकि वे आरोपियों की स्वास्थ्य स्थिति से मेल नहीं खाते थे। इन सभी तथ्यों के आधार पर कोर्ट ने एफआईआर को निरस्त कर दिया और मामले को कानूनी प्रक्रिया का अनुचित इस्तेमाल करार दिया।
अभियोजन की विश्वसनीयता पर उठे सवाल
आरोपियों की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ सिजोरिया ने कोर्ट में तर्क दिया कि यह मामला बदले की भावना से दर्ज किया गया है। उनका कहना था कि पीड़िता और उसके पति के खिलाफ एक नाबालिग के यौन शोषण का मामला उजागर हुआ था, जिससे क्षुब्ध होकर यह एफआईआर दर्ज कराई गई। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब स्वयं शिकायतकर्ता और उसका पति पहले से गंभीर अपराधों में आरोपी हों, तो उनकी विश्वसनीयता और भी संदिग्ध हो जाती है।

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