इंदौर. चुनावी मौसम में खाद्य वस्तुओं की महंगाई पर काबू पाने के लिए केंद्र सरकार मशक्कत कर रही है, लेकिन राज्य सरकार के लिए महंगाई बड़ा मुद्दा नहीं लग रहा। दालों की बढ़ती कीमतों के बाद व्यापारी प्रदेश पर महंगाई को अनदेखा करने का आरोप लगा रहे हैं। दाल उद्योगों को अब कपास कारोबारियों का भी साथ मिल गया है। दोनों उद्योग अनमने ढंग से दी गई मंडी शुल्क में छूट को उद्योग के साथ उपभोक्ताओं के लिए छलावा करार दे रहे हैं।
कृषि उपज पर सबसे ज्यादा मंडी शुल्क वसूलने वाले राज्यों में मप्र शामिल है। मप्र में अनाज से लेकर तमाम कृषि उपज पर 1 रुपये 50 पैसे प्रति सैकड़ा मंडी शुल्क के साथ 20 पैसे निराश्रित शुल्क वसूला जाता है। इस बीच इंदौर के बाजार में चना दाल 90 रुपये प्रति किलो के पार, मूंग दाल सवा सौ रुपये प्रति किलो और तुवर दाल 150 रुपये प्रति किलो के पार पहुंच गई है।
शुल्क से राहत देने को तैयार नहीं मप्र
दाल और गेहूं-चावल की बढ़ती कीमतों के बीच केंद्र सरकार ड्यूटी फ्री आयात से लेकर अन्य कई कदम उठा रही है। हालांकि, मप्र मंडी शुल्क से राहत देने को भी तैयार नहीं है। आने वाली महंगाई को भांप कर ढाई साल से उद्योग और व्यापारी इसकी मांग कर रहे थे। प्रदेश के टैक्स के कारण यहां दालों के उत्पादन की लागत में करीब दो रुपये किलो की वृद्धि हो रही है। बीते दिनों सरकार द्वारा जारी किए आदेश को भी दाल उद्योग नाकाफी करार दे रहे हैं।
ढाई साल से की जा रही है छूट की मांग
आल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन से लेकर सोपा तक प्रदेश में मंडी टैक्स से छूट की मांग ढाई वर्ष से कर रहे हैं। मप्र सरकार लगातार आश्वासन देती रही। इस बीच 25 मई को मंडी शुल्क से छूट का आदेश जारी किया, लेकिन वह बेअसर नजर आ रहा है। आल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल कहते हैं कि प्रदेश में गेहूं, ज्वार, बाजार, मक्का, सोयाबीन और दलहन, काबुली चने और कपास पर भी मंडी शुल्क लिया जा रहा है।
अनमने आदेश से कीमतों पर नहीं पड़ा असर
अग्रवाल ने कहा कि सरकार ने 25 मई को जो आदेश जारी किया, उसमें सिर्फ तुवर को मंडी शुल्क से छूट का आदेश दिया। इसमें भी शर्त जोड़ दी गई कि सिर्फ उसी तुवर को छूट मिलेगी जो अन्य प्रदेश या विदेश से प्रोसेसिंग के लिए आयात होती है। इससे दालों की कीमतों पर कोई असर नहीं पड़ा, क्योंकि सभी दालें महंगी हो रही हैं। सरकार की नीतियों से परेशान दाल मिलों ने भी उत्पादन आधा कर दिया है। प्रदेश के किसानों को भी इसका लाभ नहीं मिल रहा। व्यापारी टैक्स काटकर ही उन्हें भुगतान करते हैं।
कपास पर चुनावी छूट
बीते सप्ताह कपास को मंडी शुल्क में छूट की घोषणा हुई है। हालांकि, व्यापारी इससे नाखुश हैं। मप्र एसोसिशन आफ काटन प्रोसेसर्स एंड ट्रेडर्स के अध्यक्ष कैलाश अग्रवाल के अनुसार, कपास पर मंडी शुल्क में 50 पैसे की छूट 31 मार्च 2024 तक दी गई है। इस समय कपास का आफ सीजन है। मई तक किसान कपास पहले बेच चुका है। सरकार सिर्फ चुनावी मौसम में लाभ लेना चाहती है। अगली फसल के समय फिर से बढ़ा शुल्क लागू हो जाएगा। यानी किसान और उद्योगों को असल में लाभ नहीं होगा। नए-पुराने स्टाक की जांच में इंस्पेक्टर राज बढ़ने की आशंका है। एसोसिएशन के अध्यक्ष दावा कर रहे हैं कि ज्यादा शुल्क के कारण कपास मिलें अब प्रदेश छोड़ रही हैं। किसी समय 200 मिलें मप्र में थीं, जो अब 120 रह गई हैं।