दस्यु मलखान सिंह पत्नी ललिता राजपूत बनी संरपंच
ग्वालियर. संभाग के गुना जिले के आरोन में पूरी सिनगयाई पंचायत में निर्विरोध चुनी गयी संरपंच और सभी 12 पंच महिलायें है, निर्विरोध सरपंच चुनी गयी ललिता राजपूत पूर्व दस्यु मलखान सिंह की पत्नी है। मुख्यमंत्री ने ऐसी पंचायत को 15 लाख रूपये देने का ऐलान किया है, जहां सरपंच और पंच पद पर महिलायें निर्विरोध चुन ली जाये।
संरपंच चुनी जाने के बाद ललिता राजपूत ने बताया गांव में विकास नहीं हो रहा था। सड़क ऐसे ही पड़ी हुई है और पीने की पानी की व्यवस्था नहीं है। जब गांव में विकास के सारे कार्य कराये जायेंगे। 20 वर्ष पूर्व पंचायत अनारक्षित थी, उस वक्त भी निर्विरोध सरपंच चुना गया था तब पंचायत में काफी विकास कार्य हुए थे। उसके बार यह पंचायत लगातार आरक्षित होती चली गयी और 20 साल के बाद इस बार पंचायत सामान्य महिला के लिये आरक्षित हुई। इसलिये ग्रामीणों ने निर्विरोध पंचायत चुनने का फैसला किया। वर्षों ग्राम पंचायत में विकास नहीं हो रहा था। सरपंच कई बदले और कई चले गए। गांव में नल, बिजली, सड़क, खरंजा सभी काम पड़ा हुआ है। 1200 ग्रामीणों की यह पंचायत है। अब कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी। सभी विकास के काम गांव में होंगे। निर्विरोध पंचायत में पूरे काम करके दिखाएंगे। किसी कीमत पर किसी भी तरह का भ्रष्टाचार नहीं होने देंगे।
कौन हैं मलखान सिंह?
बता दें कि मलखान सिंह पूर्व दस्यु रहे हैं। भिंड जिले के बिलाव गांव में पैदा हुए मलखान सिंह ने जुल्म और पुलिसिया रवैये से तंग आकर बंदूक उठाई थी। इसके पीछे का कारण भूमि विवाद था। मलखान सिंह के गांव के दबंगों ने जब मनमानी शुरू की तो उन्होंने जवाब दिया। जिसके चलते उसे कुछ दिन के लिए जेल भी जाना पड़ा। ऐसे में जब मलखान ने बंदूक उठाई तो पूरा चंबल गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा। कहा जाता है कि गांव बिलाव के सरपंच कैलाश नारायण पंडित से मलखान की दुश्मनी ही उसके बागी होने का कारण रही। मलखान अपने गांव बिलाव में एक छोटे से स्थानीय मंदिर से जुड़ी कुछ भूमि पर कैलाश के अतिक्रमण से नाराज था। इसी के कारण हर बार नौबत पुलिस तक पहुंचती थी। साल 1972 में, भूमि विवाद के चलते मलखान सिंह ने बंदूक उठाई। फिर 1972 से 75 के बीच उन पर डकैती के तीन मामले दर्ज किए गए।
1982 में आत्मसमर्पण किया
फिर 15 जून 1982 में 70 हजार के इनामी डाकुओं के सरदार मलखान सिंह और उनकी गैंग ने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद मलखान 6 साल जेल में रहे और साल 1989 में सभी मामलों में उन्हें बरी करके रिहा कर दिया गया। जेल से छूटने के बाद मलखान सिंह ने राजनीति का रुख किया। साल 2014 में वह भाजपा का प्रचार करते दिखे, लेकिन 2019 में उन्हें टिकट नहीं मिला तो उन्होंने भाजपा छोड़ प्रसपा का दामन थाम लिया, लेकिन लोकसभा चुनावों में वह हार गए।

