वह अजेय किला, जिसे शिवाजी भी नहीं जीत पाये थे, सागर के बीचों बीच मौजूद मुरूद जंजीरा की कहानी
नई दिल्ली. भारत में ऐसे प्राचीन किले हैं, जो कई रहस्य समेटे हुए है। आज आपको उस किले के बारे में बताने जा रहे हैं। जिसके बारे में बहुत से लोग नहीं जानते होंगे। यह किला न सिर्फ देश बल्कि पूरी दुनिया में अपनी बनावट के लिये मशहूर है जिसे देखने के लिये लाखों सैलानी यहां खिचे चले आते हैं। यह किला महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के तटीय इलाके मुरूद में स्थित है, जिसे मुरूद जंजीरा के नाम से जाना जाता है।
मीठे पानी की झील का रहस्य

इस किले में 60 फीट गहरे मीठे पानी के छोटे तालाब है। समुद्र के खारे पानी के बीचों बीच होने के बावजूद इसका पानी मीठा है। यह मीठा पानी कहां से आता है। यह आज भी लोगों के लिये राज बना हुआ है। मीठे पानी का एक कुंआ भी है। जो आज भी काम करता है। किले के बीचों बीच पहले सिद्दकी नवाब सुरूलखान की जर्जर होती हवेली है। पहले यहां 3 मोहल्ले थे- 2 मुस्लिमों के और एक धर्म के मानने वालों के।
सैलानियों में बढ़ता क्रेज

इस इलाके के आस-पास रहने वालों को गर्व है िकवह इस विरासत को काफी करीब से जानते हैं। किले में 19 विशाल बुर्ज हैं। उन पर स दौर की बेहतरीन तोपें लगी हुई है। यह स्वीड़न, स्पेन, फ्रांस और हॉलैण्ड से मंगाई गयी थी। कहते हैं कि इीस किले की सुरक्षा के लिये लगभग 514 तोपें थी। इनमें कलाल बांगड़ी, लांडा कासम और चावरी नाम तापें आज भी मौजूद हैं। कलाल बांगड़ी तो बहुत दूर तक अचूक निशाना साधती थी।
अजेय होने का कारण

इस किले के दरवाजों को दीवारों की आड़ में बनाया गया है जिस वजह से कुछ मीटर दूर जाने पर यहां दरवाजे दिखना बन्द हो जाते हैं। यहीं कारण है कि इस किले को आज तक कोई फतह नहींे कर पाया है। इतिहास की किताबों के अनुसार 1975-76 हके एक फारसी शिलालेख में लिखा गया है कि फाहिम खान ने इस किले को बनवाया था। सन् 1618 में सुरूल निजाम नेस्वयं को जंजीरा रियासत का पहला नवाब घोषित किया था। मुगलों की भी इस किले पर नजर थी। इतिहासकारों के अनुसार शिवाजी महाराज ने जंजीरा पर अधिकार जमाने के कई प्रयास किये थे। लेकिन वह सफल नहीं हो पाये। सन् 1680 में शिवाजी महाराज के निधन के बाद उनके पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज ने 1682 में जंजीरा लेने के लिये एड़ी से चोटी का जोर लगाया था। लेकिन वह भी सफल नहीं हो पाये थे।

