मप्र छत्तीसगढ़

27 वर्षो के बाद हाईकोर्ट ने खारिज की याचिका, न्यायालय बोला-काई भी दावा अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रखा जा सकता

ग्वालियर. हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है न्यायालय में दाखिल में कोई भी अर्जी या दावा अनिश्चितकल तक लंबित नहीं रखा जा सकता है। न्यायालय ने यह टिप्पणी मोतीलाल नामक व्यक्ति के संपत्ति विवाद से जुडे मामले में की है। हाईकोर्ट ने सुनवाई में कहा है कि भले ही धारा 151 सीपीसी में कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है। लेकन अधिकार का प्रयोग उचित समय सीमा के भीतर होना चाहिये। कब्जा दिलाने जैसे मामलों में 12 साल की अविध वाजिब मानी जाती है। न्यायालय ने 27 साल की देरी को अस्वीकार्य मानते हुए अर्जी खारिज कर दी है।
कब्जा दिलाने का आदेश 1984 में किया गया था
मोतीलाल ने वर्ष 1973 में संपत्ति पर कब्जा वापिस पाने के लिये वाद दायर किया था। शुरूआत में उनका दावा खारिज हुआ। लेकन अपील में उन्हें कामयाबी मिली और 27 अगस्त 1984 को कब्जा दिलाने का आदेश मिला। इसके खिलाफ प्रतिवादी ने हाईकोर्ट में अपील की। स्थगन आदेश भी प्राप्त कर लिया। हालांकि न्यायालय ने 11 दिसम्बर 1984 को अपील खारिज कर दी। लेकिन इसकी जानकारी निचली अदालत का नहीं दी गयी थी।
वारिसों ने 2016 में लगाई थी अर्जी
3 अक्टूबर 1989 को वादी पक्ष के अधिवक्ता की अनुपस्थिति में निष्पादन कार्रवाई खारिज हो गई। लंबे अंतराल के बाद वर्ष 2016 में मोतीलाल के कानूनी वारिसों ने धारा 151 सीपीसी के तहत निष्पादन बहाल करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की थी।ग्वालियर हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि अदालत में कोई भी अर्जी या दावा अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रह सकता। न्यायालय ने यह टिप्पणी एक संपत्ति विवाद मामले में की।
मामला मोतीलाल नामक व्यक्ति से जुड़ा है। उन्होंने 1973 में संपत्ति पर कब्जा वापस पाने के लिए वाद दायर किया था। शुरुआत में उनका दावा खारिज हुआ। अपील में उन्हें सफलता मिली और 27 अगस्त 1984 को कब्जा दिलाने का आदेश मिला। प्रतिवादी ने हाईकोर्ट में अपील की और स्थगन आदेश प्राप्त कर लिया।हाईकोर्ट ने 11 दिसंबर 1984 को प्रतिवादी की अपील खारिज कर दी, लेकिन इसकी जानकारी निचली अदालत को नहीं दी गई। 3 अक्टूबर 1989 को वादी पक्ष के अधिवक्ता की अनुपस्थिति में निष्पादन कार्रवाई खारिज हो गई। वर्ष 2016 में मोतीलाल के कानूनी वारिसों ने धारा 151 सीपीसी के तहत निष्पादन बहाल करने की मांग की। कोर्ट ने कहा कि भले ही धारा 151 में कोई समय सीमा नहीं है, फिर भी अधिकार का प्रयोग उचित समय में होना चाहिए। कब्जा दिलाने के मामलों में 12 साल की अवधि वाजिब मानी जाती है। कोर्ट ने 27 साल की देरी को अस्वीकार्य मानते हुए अर्जी खारिज कर दी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *