ईरान एक फोन से सीजफायर के लिये माना, आखिर कतर पर दूसरे देशों को है क्यों इतना भरोसा
नई दिल्ली. मध्य-पूर्व में बसा छोटा सा देश कतर जिसकी आवादी महज 30 लाख है। उसकी सबसे बड़ी ताकत अकूत धन-दौलत है। इसके अलावा भी कतर की एक ताकत है। वह अंर्तराष्ट्रीय संघर्षो के समाधान में डिप्लोमेटिक पावरहाउस की तरह काम करना। हाल के सालों में दुनिया में जितने भी बड़े संघर्ष हुए है। कतर ने अपने सॉफ्ट पावर का उपयोग कर उन्हें सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ईरान और इजरायल के बीच मंगलवार को हुए सीजफायर में भी कतर की भूमिका रही है।
रॉयटर्स के अनुसार ट्रम्प ने पहले इजरायल को सीजफायर के लिये राजी किया और फिर कतर के शासक से कहा है कि वह ईरान को सीजफायर के लिये राजी कमरें। इसके बाद कतर के पीएम शेख मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान अल थानी ने ईरानी अधिकारियों को फोन किया और उन्हें सीजफायर के लिये मनाया है। यह कोई पहला मौका नहीं है। जब किसी संघर्ष में कतर ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई हो बल्कि पहले भी कतर इस तरह की सफल मध्यस्थता करता रहा है।
अफगानिस्तान-अमेरिका संघर्ष
अमेरिका 11 ने 11 सितम्बर 2001 के हमले के बाद अफगानिस्तान पर हमला कर तालिबान के साथ लड़ाई शुरू की थी। अमेरिकी सैनिकों और तालिबान के बीच दो दशक तक संघर्ष चला और आखिरकार अमेरिका को अफगानिस्तान से वापिस लौटना पड़ा। सत्ता दोबारा तालिबान के नियंत्रण में चली गयी। अफगानिस्तान से अमेरिकी और नेटो सैनिकों की वापिसी और अफगानिस्तान की स्थिति पर चर्चा में कतर ने ही मध्यस्थ की भूमिका निभाई है।