ईरान को क्यों इजरायल से ज्यादा अमेरिकी के ठिकानों पर हमला लग रहा आसान
नई दिल्ली. मध्यपूर्व की मौजूदा स्थिति जितनी विस्फोटक है उतनी ही पेचीदा भी हो चुकी है। इजरायली हमलों ने ईरान के अन्दर व्यापक तबाही मचाई है। जहां सैकड़ों रणनीतिक ठिकानों पर भारी बमबारी की गयी है। जवाबी कार्यवाही में ईरान ने भी इजरायल के कई प्रमुख शहरों को निशाना बनाते हुए मिसाइल हमले किये और बड़ा नुकसान पहुंचाया है।
इन सबके बीच अब ऐसी अटकलें तेज हो गयी हैं कि अमेरिका इजरायल के समर्थन में सीधे युद्ध में शामिल हो सकता है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान पर हमले की योजना को मंजूरी दे दी है। उन्होंने अमेरिकी सेना से फायनल आदेंश के लिये रूकने को कहा है।
वहीं ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामनेई ने कहा है कि हम अमेरिकी राष्ट्रपति की धमकियां से डरने वाले नहीं है। उन्होंने 2 टूक कहा हैकि अगर अमेरिका ईरान-इजरायल जंग में शामिल होता है तो उसके बुरे परिणाम होंगे।
50 हजार ताबूत तैयार रखे अमेरिका- नबवियान
ईरान ने साफ कर दिया है कि अगर वह इस जंग में शामिल होता है तो उसे भारी कीमत चुकानी होगी. कुछ दिन पहले ईरानी संसद की नेशनल सिक्योरिटी कमेटी के डिप्टी चेयरमैन महमूद नबवियान ने अमेरिका पर पलटवार करते हुए कहा, “हमारे लिए अमेरिका के सैन्य ठिकानों पर हमला करना, इजरायल पर हमले से भी आसान है। अगर अमेरिका ने ईरान पर हमला किया, तो उसे अपने सैनिकों के लिए 50,000 ताबूत तैयार रखने होंगे ।”
महमूद नबवियान का ये बयान कोई हवा में दिया गया बयान नहीं है, इसके लिए अगर हम तथ्यों पर गौर करेंगे तो काफी हद तक उनकी बात सही साबित होती दिखती है। अतीत में गंभीर से गंभीर हालातों में भी अमेरिका ने कभी ईरान पर कभी सीधा हमला नहीं किया है। उसने हमेशा ईरान पर प्रतिबंध ही लगाए है।
मध्य-पूर्व ईराक के असान टारगेट हैं अमेरिकी ठिकाने
दरअसल मिडिल ईस्ट में अमेरिका के कई सैन्य अड्डे है। अगर अमेरिका अब जंग में शामिल होता है तो ये सारे एयरबेस भी एक झटके में ईरान की जद में आ जाएंगे. यही वजह है कि ईरान ने कहा कि अमेरिका के सैन्य ठिकानों पर हमला करना इजरायल पर हमले से भी आसान है। आखिर क्यों ईरान के लिए अमेरिकी ठिकानों को इजरायल की तुलना में निशाना बनाना आसान है? इस सवाल का जवाब छुपा है भू-राजनीतिक रणनीति, सैन्य जोखिमों और तकनीकी चुनौतियों में. आइए तथ्यों के आधार पर समझते है।

