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MP-दैनिक वेतन भोगियों के नियमितीकरण के 50 हजार प्रकरण न्यायालय में लंबित, मुख्य सचिव को न्यायालय में पार्टी न बनाया जाये-जीएडी

भोपाल. राज्य सरकार का स्थाई आदेश है कि मुख्य सचिव को न्यायालय में पार्टी न बनने दिया जाये। जहां भी अवमानना के प्रकरण में मुख्य सचिव नामजद पार्टी हैं। उसे वहां हटवाया जाये। बावजूद इसके 167 स्थाई कर्मियों के नियमितीकरण के अवमानना प्रकरण में पूर्व मुख्य सचिव वीरा राणापार्टी बन गयी है। उन्हें न्यायालय में उपास्थित रहने का नोटिस जब पहुंचा त बवह सेवानिवृत्त हो चुकी थी। मुख्य सचिव कार्यालय में उपसचिव डीके नागेन्द्र ने नोटशीट लिखी थी कि हाईकोर्ट के प्रकरण क्रमांक 2946/2024 राजेन्द्रप्रसाद पटेल बनाम वीरा राणा में मुख्य सचिव कोर्ट में उपस्थित होना है इसलिये समस्त विभाग प्रकरण आवश्यक कार्यवाही कर अवगत कराये। इसके बाद से हड़कंप मचा हुआ है।
दरअसल इस मामले में विभागों से जो जानकारी मुख्य सचिव कार्यालय को भेजी गयी, उसमें कहा गया हैकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप स्थाई कर्मियों के जो आवेदन मिले है। उनका समाधान कर दिया गया है।
50 हजार स्थाई कर्मियों के न्यायालय में लंबित हैं मामले
मध्यप्रदेश में दैनिक वेतन भोगियों के नियमितीकरण के मामले में सरकार सोई रहती है न्यायालय के आदेश के बावजूद प्रकरणों का निराकरण नहीं कर रहे है। ऐसे न्यायालय मुख्य सचिव को तलब करता है तो उन्हें नामजदगी से हटाने के लिये आवेदन दे रहे है। यह तो सरासर लापरवाही है। स्थाई कर्मियों का मामला बड़ा ही पैचीदा है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उमा देवी बनाम कर्नाटक राज्य प्रकरण में 2006 में जो फैसला सुनाया, असी के अनुरूप् राज्यों में खासतौर पर वर्क्स डिपार्टमेंट में लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) में समस्त संभागों में चीफ इंजीनियर की अगुवाई में एक छानबीन समिति गठित की गयी है। जिसे न्यायालय के निर्देशानुसार दैनिक वेतन भोगियों को नियमित करना था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में साफतौर पर कहा था कि ऐसे कर्मी फैसले की तारीख को जिनकी सेवा 10 वर्ष की हो गयी है। उन्हें नियमित किया जाये। भर्ती अनियमित हो लेकिन अवैधानिक न हो। जिस पद के लिये नियमित किया जाना है।
उस उम्मीदवार शैक्षणिक योग्यता पूरी करते हों यह समस्त प्रक्रिया सिर्फ एक बार के लिये रहेगी। इसे परंपरा न बनाया जाये। राज्य सरकार ने इन्हीं मापदंडों के मुताबिक दैनिक वेतन भोगियों का नियमितीकरण कर दिया जाये और जो मापदंड पूरे नहीं कर रहे थे उन्हें सेवा से अलग नहीं किया जाये और एक नया नाम दिया स्थाई कर्मी । इनका अलग से वतन का स्ट्रक्चर निर्धारित किया गया और शासकीय सेवकों के समान रिटायरमेंट की आयु भी 62 वर्ष तय कर दी। इस परिधि में प्रदेश में विभिन्न विभागों में कार्यरत 50 हजार से अधिक कर्मचारी है जो स्थाई कर्मी है। इसके बाद से ही लगातार स्थाई कर्मी बने यह कर्मचारी नियमितीकरण की मांग करते रहे हैं।
ओआईसी दें नाम हटाने के आवेदन
जीएडी के स्टेंडिंग आर्डर है, कि चीक सेक्रेटरी को न्यायालय में पार्टी नहीं बनाया जाये, क्योंकि प्रकरण से उनका कोई लेना देना ही नहीं है। संबंधित विभाग के प्रभारी अधिकारी न्यायालय के समक्ष उपस्थित होकर प्रकरण से नाम हटाने के लिये आवेदन दें। यह कार्यवाही सुनवाई के दौरान ही की जा सकती है।
बीके वख्शी, अधिवक्ता, एमपी हाईकोर्ट
सरकार के न्यायालय में चल रहे अलग-अलग प्रकरणों में सुनवाई के लिये लॉ ऑफीसर नियुक्त किये गये है जो इस काम को देख रहे है। हर एक प्रकरण का आफीसर अध्ययन करते हैं और न्यायालय में जबाव रखते हैं।
प्रशांत सिंह, महाधिवक्ता

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