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76वें स्वतंत्रता दिवस पर मोदी सरकार में कितना बढ़ा देश का ग्रोथ इंजन?

नई दिल्ली 76वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहे है। इस नया स्वतंत्रता दिवस रहेगा। 17वीं सदी से 21 वीं सदी तक का साक्षी दिल्ली का लाल किला। देश की पहली एक ऐसी ऐतिहासिक इमारत, जिसने भारत के भविष्य की नींव पड़तें हुए अपनी आंखों से देखा हे। हिन्दुस्तान के कोहिनूर के लिये भी अंग्रेजों ने हिफाजत की किलेबंदी के तौर पर जिस लाल किला को ही चुना। यही लाल किला 76 वर्षो से भारत में बनते इतिहास और बदलती सत्ताओं का भी गवाह रहा है। पंडि़त जवाहर लाल नेहरू से लेकर लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी,नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेई, मनमोहन सिंह और नरेन्द्र मोदी तक। हर एक प्रधानमंत्री इसी लाल किले से तिरंगा फहराकर देश को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें देते आये है।
लाल किला इतिहास से मिली सीख और भविष्य के भारत की खुशियों के इतिहास को रचने वाली गाथा का हर 15 अगस्त को साक्षी बनता आ रहा है। अब सवाल उठता है कि आजादी का जश्न लालकिले से ही क्यों मनता आ रहा है? इसके पीछे कारण है कि लाल किला 1857 की क्रांति से पहले और 1947 के बाद के भारत को जोड़ता था। वहां तिरंगा फहराया जाना, एक सांकेतिक यात्रा के पूरे होने जैसा था। आजादी से गुलामी और फिर आजादी तक की यात्रा, आजादी के समारोह के लिये लाल किले का चुना जाना भारत के लिये अपनी विरासत को दोबारा प्राप्त करने जैसा रहा है।
लाल किला राजनीति नहीं राष्ट्रनीति का मंच है। यह बात प्रधानमंत्री नर्रेन्द्र मोदी ने लालकिले से ही अपने पहले संबोधन यानी वर्ष 2014 में कहीं थी। तब देश आजादी का 68वां उत्सव मना रहा था। तब पीएम मोदी स्वयं को प्रधानमंत्री के बजाय प्रधानसेवक बताते हुए देश की आर्थिक उन्नति का एक नक्शा जनता के सामने रखा था। जनधन खाता, मेक इन इंडिया, डिजिलट इंडिया, युवाओं पर भरोसा और तंत्र के भीतर अटकाने, भटकाने, लटकाने की जड़ता को समाप्त करने की दृढ़ता का मंत्र प्रधानमंत्री ने गढ़। 9 साल के बाद जब 10वीं बार प्रधानमंत्री लालकिले पर बोलने आ रहे हैं। तब 2024 के चुनाव से पहले अपने दूसरे कार्यकाल के तहत लालकिले से होने वाले आखिरी भाषण में प्रधानमंत्री क्या कहेंगे? क्या तीसरे कार्यकाल में दुनिया की तीसरी उन्नत अर्थव्यवस्था भारत को बना देने का सपना जनता के मन में अब लालकिले से भी रखेंगे?
भारत चीन को पीछे छोड़ेगा?
ब््रोकरेज फर्म मॉर्गन स्टेनली का मानना है कि भारत में लम्बी तेजी से शुरूआत होने वाली है। जबकि चीन की तेजी खत्म होने के नजदीक है। स्टेनली ने भारत के बाजार पर अपने आउटलुक को बढ़ाकर ओवरवेट कर दिया है। जबकि चीन पर आउटलुक डाउनग्रेड कर इक्वलवेट कर दिया है। मॉर्गन स्टेनली ने कहा कि भारत का भविष्य काफी हद तक चीन के अतीत जैसा दिखता है। ऐसा लगता है कि दशक के अंत में चीन का जीडीपी ग्रोथ रेट भारत के 6.5प्रतिशत की तुलना में करीब 3.9 प्रतिशत रहेगा। यह भी कहा गया है कि डेमोग्राफिक ट्रेड भी भारत के पक्ष में दिख रहा है। जबकि चीन में पिछले दशक की शुरूआत से कामकाजी उम्र की आबादी में गिरावट देखी गयी है।
सेमीकंडक्टर और चिप बनाने पर जोर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा दिखाया गया है िकवह सपना तभी पूरा होगा जब चीन की तरह भारत में भी दुनिया के लिये लिये माल बने और निर्यात हो। मैन्यूफैक्चरिंग से निवेश और तकनीक दोनों आते हैं। जिससे रोजगार मिलता है और समाज समृद्ध होता है। अमेरिका हो या फिर चीन। दोनों देशों को इसी फॉर्मूले ने महाशक्ति बनाया। भारत सरकार भी इसी रास्ते पर चलते हुए नये रास्ते तलाश रही है। उसकी ओर कदम बढ़ा रही है। इसमें सेमीकडक्टर और चिप का बड़ा बाजार भी शामिल है। जिस पर फिलहाल ताइवान और चीन का कब्जा है।
2014 के बाद बदल रहा है भारत
मोदी सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार भारत हर वर्ष 10 हजार किलोमीटर हाईवे बना रहा है। ग्रामीण सड़क नेटवर्क की लम्बाई इस साल 7 लाख 29 हजार किलोमीटर पहुंच गयी है। पिछले 8 साल में 50 किमी नेशनल हाइवे बने हैं। 100 वंदे भारत ट्रेनें शहरों को नजदीक ला रही है। अगले 24 माह में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मेट्रो सिस्टम भारत का होगा। भारत में गांव की सड़कें तेजी से बनने लगीं हैं। हाइवे तेजी से तैयार होने लगे। 2014 में भारत में 74 एयरपोर्ट थे। 2023 तक 148 एयरपोर्ट हैं। 2014 से पहले सालाना करीब 600 किलोमीटर रेलवे लाइन का विद्युतीकरण यानी इलंेक्ट्रिफिकेशन हुआ था। अब इसकी रफ्तार 4 हजार किलोमीटर प्रति वर्ष हो गयी है।
चीन से सटी सीमा पर सड़को का निर्माण
देश की सेना एक ओर स्वदेशी और आधुनिक हथियारों से लैस हो रही है। वहीं भारतीय सेना की पहुंच दुर्गम से दुर्गम क्षेत्रों में आसान करने के लिये सड़कों, रेल यातायात और वायुसेवा पर भी फोकस किया गया है। चीन की बुरी नीयत को देखते हुए बीआरओ ने पिछले 3 वर्षो में सीमा पर बनी सड़कों में 60प्रतिशत रोड चीन से सटे बॉर्डर पर ही बनाई गयी है। अरूणाचल प्रदेश में 507 किमी। लद्दाख में 453 किमी, और उत्तराखं डमें 343 किलोमीटर सडकें बनायी गयी है। विदेश मंत्री ने भी बताया है कि बीआरओ यानी सीमा सड़क संगठन के लिये अनुमानित आवंटन इस वर्ष 14 हजार387 करोड़ रूपये हैं जो कि 2013-14 में 3 हजार 782 करोड़ रूपये था यानी इसमें 4 गुना इजाफा हुआ है।

 

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