मप्र छत्तीसगढ़

हथियार लायसेेंस पर न्यायालय ने सुनाया अहम फैसला, 2 हथियार वाले परिवार को तीसरा लायसेंस नहीं

ग्वालियर हाईकोर्ट ने हथियार लायसेंस को लेकर बुधवार को अहम फैसला सुनाया है। न्यायालय ने कहा है कि बन्दूक रखना मौलिक हक नहीं है। यह शासन का विवेकाधिकार है कि वह किसे हथियार रखने का लायसेंस दे। न्यायालय ने अशोकनगर के हरदीप कुमार अरोरा की साल 2012 की याचिका खारिज कर दी।
अशोक अरोरा ने राज्य शासन से पिस्टल/रिवॉल्वर के लायसेंस का आवेदन खारिज करने पर कोर्ट की शरण ली थी। उनका तर्क था कि वह कृषक है। उन्हें अजीविका और सुरक्षा के लिये हथियार लायसेंस चाहिये। उन्होंने न्यायालय को बताया कि जिला दंडाधिकारी अशोकनगर और कमिश्नर ने साल 2010 में उनके पक्ष में सिफारिश की थी। लेकिन राज्य शासन ने फरवरी 2011 में आवेदन खारिज कर दिया।
सुरक्षा सर्वोपरि और सार्वजनिक शांति-न्यायालय
न्यायालय ने राज्य सरकार का पक्ष स्वीकार किया। न्यायालय ने कहा है कि सार्वजनिक शांति और सुरक्षा सर्वोपरि है। हथियार लायसेंस का दुरूपयोग रोकना आवश्यक है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि शस्त्र अधिनियम की धारा 13 और 14 के तहत लायसेंस देना प्रशासनिक विवेकाधिकार है। जब तक किसी व्यक्ति को अपनी जान का वास्तविक खतरा न हो। उसे हथियार लायसेंस नहीं दिया जा सकता।
पिता-पुत्र के पास पहले से लाइसेंस
सरकारी अधिवक्ता रवींद्र दीक्षित ने कोर्ट को बताया कि अरोरा के पास 315 बोर की बंदूक का लाइसेंस पहले से है। उनके पिता के पास 12 बोर की बंदूक का लाइसेंस है। ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में शादियों और धार्मिक आयोजनों में हथियारों के दुरुपयोग से कई हादसे हुए हैं। क्षेत्र में पहले से हथियारों का प्रचलन ज्यादा है।

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