होली एक ऐसा रंग-बिरंगा त्यौहार है, जिसे हर धर्म के लोग मनाते है.. देवेश शर्मा
ग्वालियर। सामाजिक संस्था जनउत्थान न्यास के तत्वाधान में द्वारिकाधीश मंदिर कुम्हरपुरा ठाठीपुर ग्वालियर में होली मिलन समारोह एवं हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में ग्वालियर भाजपा जिलाध्यक्ष देवेश शर्मा मौजूद रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता भन्ते श्री सिद्धा शिष्यषिश्य ने की एवं विश्ष्ठि अतिथि के रूप में लायकराम बौहरे, चेतराम चौधरी, ग्वालियर भाजपा जिला उपाध्यक्ष रामेष्वर भदौरिया, ग्वालियर भाजपा जिला महामंत्री शरद गौतम एवं प्रताप सेना प्रमुख भूपेन्द्र चौहान मौजूद रहे। स्वागत भाशण विश्ष्ठि भाजपा नेता एवं अध्यक्ष जनउत्थान न्यास डॉ. सतीश सिंह सिकरवार ने दिया और कार्यक्रम की विस्तार से रूपरेखा रखते हुये, सभी को होली की षुभकामनाए दी।
कार्यक्रम में न्यास के अध्यक्ष एवं श भाजपा नेता डॉ. सतीष सिंह सिकरवार ने मंचासीन अतिथियों का पुश्पहारों से स्वागत किया तथा स्मृति चिन्ह भेंट किये।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ग्वालियर भाजपा जिलाध्यक्ष देवेश शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि होली एक ऐसा रंग-बिरंगा त्यौहार है, जिसे हर धर्म के लोग पूरे उत्साह के साथ मनाते है। प्यार भरे रंगो से सजा यह पर्व हर धर्म, संप्रदाय, जाति के बंधन खोलकर भाई-चारे का संदेश देता है। डॉ. सिकरवार ने अपने उद्बोधन में कहा कि यहा आयोजन देश के उन वीर जवानों को समर्पित है, जो दिन-रात कि पर्वाह न करते हुये सीमा पर देष की सुरक्षा में लगे रहते है। डॉ. सिकरवार ने कहा कि होली के दिन सारे लोग अपने पुराने गिले- शकवे भूल कर गले लगते हैं और एक दूजे को गुलाल लगाते हैं। सामाजिक सद्भाव आपसी भाईचारे का प्रतीक होली के पर्व की मैं सभी को षुभकामनाएं देता हूॅ।
अतिथियों के उद्धबोदन के बाद कवि सम्मेलन का आगाज संचालन करते हुये सुमित मिश्रा ने बारी-बारी से कवियों को अपनी-अपनी रचनाऐं पढने के लिए आमंत्रित किया और कवियों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया।
कवि सम्मेलन में पहली प्रस्तुति कार्यक्रम का संचालन कर रहे ओरछा के कवि सुमित मिश्रा ‘राश्ट्रीय चेतना’ ने अपनी रचना प्रस्तुत करते हुये कहा कि कोई जब घात करता है तो ये प्रतिघात करती है, षहंषाह सूरमाओं से भी दो-दो हाथ करती है, ऐ दिनकर की परंपरा है मुर्खता धर्म है इसका, वजीरी मौन हो भय से तो कविता बात करती हैं, बनना है तो युवा साथियों भारत की तस्वीर बनो, धर्म ध्वजा की रक्षा करने पारथ के तीर बनो, देष धर्म पर बलिदानों की एक नई बुनियाद बनो, भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू, चंद्रषेखर आजाद बनो।
कवि सम्मेलन में अगली प्रस्तुति अलवर (राजस्थान) के कवि कमलेष बसंत ‘सबरस’ ने अपनी रचना प्रस्तुत करते हुये कहा कि सारी सृश्टि सखी हमारी इस से प्रेम करो जी, सीखो प्रेम प्रकृति से फिर जीवन में रंग भरो जी, कोयल गाए राग मल्हार भंवरे करें मृदुल गुलजार, इसे मधुमास बतायो है प्रेम रंग की भर पिचकारी, मिलन संदेष सुनायो है पर्व होली को आयो है। देह पूरी लड़ी बस मिली बोटियां, इस षहादत में खेली गई गोटियां, तेरे घर पर न चूल्हा जला 20 दिन, पर सियासत में सेकीं गई रोटियां।
कवि सम्मेलन में अगली प्रस्तुति देवास के हास्य व्यंग्य कवि कुलदीप रंगीला ने अपनी रचना प्रस्तुत करते हुये कहा कि दूर उनके मुख से निवाले कर दो, मखमली पॉव में छाले कर दो, सारे बलात्कारियों को चुन-चुन कर, हैदराबाद पुलिस के हवाले कर दो, जो अक्ल के अंधे थे उन्हे आंख दे गए, कष्मीर के संग देष को लद्दाख दे गए, दो बच्चों की सिजेरियन से करके डिलीवरी, मोदी जी लो महबूबा को तलाक दे गए।
कवि सम्मेलन में अगली प्रस्तुति लखनऊ की कवियत्री रेखा भदौरिया ने अपनी रचना प्रस्तुत करते हुये कहा कि अबके फाल्गुन में, ऐसो रंग डारो पिया, मोहे अपने ही रंग, रंग डारो पिया, तेरे रंग में पिया मैं तो रंग जाऊंगी, तेरे ढंग में पिया मैं तो ढल जाऊंगी, मेरे सतरंगी सपने संवारो पिया, मोहे अपने ही रंग मैं, अब महावर लगा दो मेरे पांव में, हार सब मैं गयी प्रेम के दांव में, याद में उनकी नैना समंदर हुए, मुझको ले चल सखी पिया के गांव मैं।
कवि सम्मेलन में अगली प्रस्तुति कानपुर के गीतकार संजीव कुलश्रेश्ठ ने अपनी रचना प्रस्तुत करते हुये कहा कि कान्हा बन कर तुम आ जाओ मधुवन बीच मिलेंगे, राधा संग ज्यों मोहन खेले रंग वही खेलेगें, हर घड़ी दिल ये बड़ा बेकरार रहता है, बंद पलके ही सही इंतजार रहता है, भले नसीब ने कुछ दिन की दूरियां लिख दी, दूरियों में भी तो ऐ दोस्त प्यार रहता है।
कवि सम्मेलन में अंतिम प्रस्तुति ग्वालियर के हेमंत षर्मा ‘ओज’ ने अपनी रचना प्रस्तुत करते हुये कहा कि रोते आज कृशक बेचारे रोती भारत माता है, जो सबका पालन करता है वो फांसी चढ़ जाता है, मुफ्त मैं मिल जाती है फिर भी नहीं खाते, मेरे गांव मैं नेताजी जीतकर नहीं आते, सो जाते है खेतों की मेड़ों पर गमछा बिछाकर, हम किसान कभी नींद की गोली नहीं खाते।