ग्वालियर की प्राचीनता का उत्सव: विश्व धरोहर सप्ताह के समापन पर एक अद्वितीय छायाचित्र प्रदर्शनी

ग्वालियर, मध्य भारत का वह ऐतिहासिक नगर, जिसकी धमनियों में सदियों का इतिहास और संस्कृति प्रवाहित होती है, ने हाल ही में ‘विश्व धरोहर सप्ताह’ के समापन पर एक अद्वितीय और ज्ञानवर्धक आयोजन का साक्षी बना। यह आयोजन केवल एक प्रदर्शनी मात्र नहीं था, बल्कि ग्वालियर की समृद्ध विरासत के प्रति सम्मान, जागरूकता और संरक्षण की भावना को समर्पित एक भव्य समारोह था। जीवाजी विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग द्वारा आयोजित इस छायाचित्र प्रदर्शनी ने शहर के शैलचित्रों, मंदिरों, स्मारकों, स्थापत्य और वास्तुकला को एक नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया, जिससे दर्शकों को अपनी ही मिट्टी की गौरवशाली पहचान से जुड़ने का अवसर मिला।छायाचित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन एक गरिमामय समारोह में हुआ, जिसमें शिक्षा, कला और संस्कृति जगत की प्रतिष्ठित हस्तियाँ उपस्थित थीं। प्रो. स्मिता सहस्त्रबुद्धे , कुलगुरु, राजा मान सिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय, ग्वालियर ने मुख्य अतिथि के रूप में प्रदर्शनी का उद्घाटन किया।
उनका आगमन इस बात का प्रतीक था कि कला, संगीत और पुरातत्व का गहरा संबंध है और ये सभी एक-दूसरे के पूरक हैं। उन्होंने अपने उद्घाटन भाषण में कला और धरोहर के संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डाला और बताया कि कैसे हमारी प्राचीन कलाकृतियाँ हमारी पहचान और प्रेरणा का स्रोत हैं। इस अवसर पर जीवाजी विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. राकेश कुशवाह भी उपस्थित थे, जिन्होंने विश्वविद्यालय के शैक्षणिक और प्रशासनिक सहयोग को रेखांकित किया। प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. शांतिदेव सिसौदिया ने विभाग की ओर से प्रदर्शनी के उद्देश्यों और उसके माध्यम से किए जा रहे प्रयासों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया। उनकी उपस्थिति ने प्रदर्शनी को अकादमिक गरिमा और विशेषज्ञता प्रदान की।प्रदर्शनी का विषय अत्यंत व्यापक और गहरा था, जिसमें ग्वालियर क्षेत्र के शैलचित्रों से लेकर मंदिरों, स्मारकों, स्थापत्य कला और वास्तुकला तक की विविधताओं को समाहित किया गया था। शैलचित्र, जो मानव सभ्यता के प्रारंभिक कलात्मक अभिव्यक्तियों में से एक हैं, हमें हजारों साल पीछे ले जाते हैं, जब इस क्षेत्र में आदिम मानव विचरण करते थे और पत्थरों पर अपने जीवन की गाथाएँ उकेरते थे। इन चित्रों के माध्यम से प्राचीन जीवनशैली, विश्वासों और कलात्मक कौशल की झलक मिलती है।
वहीं, ग्वालियर के मंदिर और स्मारक, जैसे कि ग्वालियर दुर्ग पर स्थित मान मंदिर, गुजारी महल, सास-बहू मंदिर और तेली का मंदिर, विभिन्न कालों की स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। ये संरचनाएँ न केवल धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखती हैं, बल्कि कलात्मक सूक्ष्मताओं और इंजीनियरिंग कौशल का भी प्रदर्शन करती हैं। प्रदर्शनी में इन सभी पहलुओं को तस्वीरों के माध्यम से इतने सजीव ढंग से दर्शाया गया था कि दर्शक अतीत के गलियारों में झाँकने को विवश हो गए।विश्व धरोहर सप्ताह, प्रतिवर्ष दुनिया भर में अपनी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासतों के संरक्षण और संवर्धन के महत्व पर प्रकाश डालने के लिए मनाया जाता है। इसी कड़ी में, ग्वालियर जैसे धरोहर संपन्न शहर में इसका समापन दिवस अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। जीवाजी विश्वविद्यालय का प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, जो क्षेत्र की अकादमिक और पुरातात्विक गतिविधियों का केंद्र है, ने इस अवसर पर एक विस्तृत छायाचित्र प्रदर्शनी की संकल्पना की।
इस प्रदर्शनी का मुख्य उद्देश्य ग्वालियर क्षेत्र की अमूल्य धरोहरों को, जो अक्सर समय की धूल में दब जाती हैं, दृश्य माध्यम से जनमानस के समक्ष लाना था ,इस अवसर पर, ज्ञान के प्रसार को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न आयु वर्ग के दर्शकों को आमंत्रित किया गया। रामश्री स्कूल के साथ-साथ अन्य दो स्कूल के छात्र-छात्राएँ विशेष रूप से इस प्रदर्शनी का अवलोकन करने पहुँचे। इन युवा मनों के लिए यह एक अद्भुत अनुभव था। उन्होंने तस्वीरों के माध्यम से ग्वालियर के ऐतिहासिक काल के महत्व को समझा और अपनी विरासत के प्रति एक प्रारंभिक समझ विकसित की। उनके चेहरे पर कौतूहल और सीखने की ललक स्पष्ट दिख रही थी। यह युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति और इतिहास से जोड़ने का एक प्रभावी तरीका था, जिससे उनमें अपनी धरोहर के प्रति सम्मान और संरक्षण की भावना जागृत हो सके।
इस प्रदर्शनी में विभाग के शोधार्थी भी सक्रिय रूप से उपस्थित थे, जो इस क्षेत्र की धरोहर पर गहन शोध कार्य कर रहे हैं। वैशाली गुर्जर, राहुल कुमार, प्रिया सुमन, पूर्णिमा यादव, वैभव शर्मा, डॉ. अमिता खरे, राहुल बरैया, राजकुमार गोखले, सामिन खान जैसे शोधार्थी और अनामिका, आँचल, केतन चतुर्वेदी, अंजलि, अनन्या बटोल, अभिषेक , लवान्या, ज्योति, श्वेता, सचिन, सोनू, अजय, रवि सहित अन्य कई छात्र-छात्राएँ मौजूद थे। उनकी उपस्थिति ने प्रदर्शनी को एक अकादमिक मंच भी प्रदान किया, जहाँ वे अपने ज्ञान और अनुभवों को साझा कर सके। इन शोधार्थियों की सक्रिय भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि ग्वालियर की विरासत को समझने और संरक्षित करने के लिए एक गंभीर शैक्षणिक प्रयास किया जा रहा है। ये युवा शोधार्थी भविष्य में हमारी धरोहरों के संरक्षक और प्रणेता बनेंगे।
अंततः, विश्व धरोहर सप्ताह का यह समापन समारोह और छायाचित्र प्रदर्शनी केवल एक शैक्षिक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि यह ग्वालियर की गौरवशाली पहचान को पुनः स्थापित करने और भविष्य की पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने का एक सफल प्रयास था।

