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गाजा में आर्मी भेजकर चौधराहट दिखाना चाहता है पाकिस्तान, जिन्ना के इजरायल हेट का क्या होगा

नई दिल्ली. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने गाजा पीस प्लान की घोषणा करते हुए कहा है कि इस प्लान का पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ और आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर का 100 प्रतिशत सपोर्ट हासिल है। उन्होंने कहा है कि दोनों शुरू से ही हमार साथे, डोनाल्ड ट्रम्प के इस बयान से पाकिस्तान को एक बार फिर से गलतफहमी हो गयी है। पाकिस्तान को लगता है कि इंटरनेशनल लेवल पर चौधराहट दिखाने का बड़ा मौका उसके पास है। इसलिये पार्किस्तान में अब यह चर्चा हो रही है कि गाजा में जिस इंटरनेशनल स्टेबाइजेन फोर्स की तैनाती होने जा रही है। क्या पाकिस्तान की सेना उसका हिस्सा बनेगी।
आपको बता दें कि डोनाल्ड ट्रम्प ने गाजा के लिये जिस शांति प्लान की रूपरेखा तैयार की है। उसके तहत गाजा में 72 घंटे में जंग की समाप्ति। बंधकों की वापिसी, युद्ध से जुड़े हथियारों का सरेंडर, गाजा में शांति सैनिकों तैनाती और युद्ध से ध्वस्त हो चुके इस शहर का पुर्ननिर्माण शामिल हैं गाजा पीस प्लान के ऐलान से पूर्व पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ और आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने वॉशिंगटन में डोनाल्ड ट्रम्प से मुलाकात की थी।
जिन्ना, इजराइल को नहीं मानता था
पाकिस्तान का संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने इजरायल के निर्माण का कड़ा विरोध किया था। 1947 में जब संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन विभाजन योजना को मंजूरी दी तो जिन्ना ने इसे अन्यायपूर्ण और फिलिस्तीनी अरबों के अधिकारों का उल्लघंन करार दिया। उन्होंने तर्क दिया कि यह योजना ब्रिटिश साम्राज्यवादी नीतियों का परिणाम थी और मुस्लिम दुनिया के हितों के खिलाफ थी।
अरब देशों में पाकिस्तान ने कब कब अपनी सेना भेजी है?
गाजा में पाकिस्तान ने अब तक अपनी सेना नहीं भेजी है, लेकिन 1960 के दशक से ही पाकिस्तान की सेना सऊदी समेत कुछ अन्य खाड़ी देशों में मौजूद रही है. पाकिस्तान की सेनाओं ने यहां ट्रेनिंग, सलाहकार, सुरक्षा सहायता और युद्धकालीन समर्थन की जिम्मेदारी ली है. ये तैनातियां पाकिस्तान की विदेश नीति का हिस्सा रही हैं, जो अरब देशों को सैन्य क्षमता विकसित करने में मदद करती हैं।
पाकिस्तान ने पहली बार 1960 के दशक में अपने सैनिकों को सऊदी सीमाओं की रक्षा के लिए भेजा. ये वो दौर था जब मिस्र ने यमन युद्ध शुरू किया था. इस दौरान पाकिस्तानी वायु सेना के पायलटों ने सऊदी वायु सेना को प्रशिक्षण दिया और लगभग 20,000 सैनिक तैनात किए. 1969 में सऊदी अरब के अल-वादीह युद्ध में पाकिस्तानी मिलिट्री इंजीनियरों ने यमन सीमा पर किले बनाए. वायु सेना के पायलटों ने सऊदी विमानों को उड़ाया.1973 के योम किप्पुर युद्ध में पाकिस्तान के सैनिक मिस्र और सीरिया गए. पाकिस्तानी वायु ब्रिगेड को दमिश्क की रक्षा के लिए तैयार किया गया और पाकिस्तान ने हथियारों की आपूर्ति भी की. 1979 में जब चरमपंथियों ने सऊदी अरब के मक्का में ग्रैंड मस्जिद पर कब्जा कर लिया तो पाकिस्तान ने स्पेशल फोर्सेज को विद्रोहियों को हटाने में सहायता के लिए भेजा।

 

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