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MP में दैनिक वेतन भोगियों को झटका, प्रतिबंध के बाद भी रखे गए कर्मचारियों की होगी छंटनी

भोपाल. प्रदेश में वर्ष 2000 में दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी रखने पर प्रतिबंध लगाया गया था। यह व्यवस्था सभी विभागों के साथ निगम, मंडल, सार्वजनिक उपक्रम आदि में भी लागू की गई थी लेकिन नगरीय निकायों में नियुक्तियां होती रही। नगीय विकास एवं आवास विभाग ने इसे गंभीरता से लेते हुए नगर निगम आयुक्तों और नगर पालिका व पषिद के मुख्य नगर पालिका अधिकारियों से पूछा है कि नियुक्ति किस आधार पर की गई, वेतन कहां से दिया जा रहा है। शासन से अनुमति ली गई या नहीं और तत्समय कौन अधिकारी पदस्थ थे। यह रिपोर्ट 25 अक्टूबर तक मांगी गई है। इसके आधार पर आगामी निर्णय लिया जाएगा।
कैलाश विजयवर्गीय ने की थी समीक्षा
पिछले सप्ताह मंत्रालय में नगरीय विकास एवं आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और अपर मुख्य सचिव संजय दुबे ने विभागीय समीक्षा की थी। इसमें निकायों की आर्थिक स्थिति पर चर्चा में समय पर कई जगहों पर समय पर वेतन नहीं बंटने की बात आई तो बताया गया कि दैनिक वेतनभोगियों का वेतन रूका हुआ है। इस पर पूछा गया कि उन्हें किस नियम से रखा गया। वित विभाग ने 28 मार्च 2000 को दैनिक वेतन पर किसी की भी नियुक्ति नहीं करने के निर्देश दिए थे।
क्या है पूरा मामला
यह प्रविधान निगम, मंडल, नगीय निकायों, विकास प्राधिकरण, सहाकरी संस्थाओं के साथ सार्वजनिक उपक्रमों पर भी लागू किया गया था। इसके बाद भी नगरीय निकायों में दैनिक वेतन पर कर्मचारी रखे गए। इसके लिए किसी से अनुमति भी नहीं ली गई जबकि 2006 में नियमित किया गया। उमा देवी के प्रकरण में 2014 में जहां पद नहीं है लेकिन 10 साल हो गए थे उन्हें वेतनमान देकर विनियमित कर्मवीह बनाया गया। इन्हें स्थायी कर्मी बनाया गया। इसके बाद भी निकायों ने दैनिक वेतन पर कर्मचारी रखे, जो शासन के आदेश का उल्लंघन है। ऐसे सभी कर्मचारियों की जानकारी निकायों से मांगी गई है। उनसे पूछा गया है कि दैनिक वेतनभोगी को पारिश्रमिक कितना और कब से दिया जा रहा है। जब नियुक्ति की गई तब अधिकारी कौन पदस्थ था। रिपोर्ट के आधार पर विभाग निर्णय लेगा कि इनका क्या करना है।

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