मप्र छत्तीसगढ़

डॉ राजकुमार आचार्य बोले -पुरातत्व हमारे अतीत को सहेज कर रखने का माध्यम है, संगोष्ठी में 42 से 45 शोध पत्र प्रस्तुत किए गए,

ग्वालियर जीवाजी विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययनशाला जनजातीय अध्ययन एवं विकास केंद्र द्वारा 2 दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी “पुरातत्व में नवीन अन्वेषण मध्य प्रदेश के विशेष संदर्भ में” आयोजित की गई। संगोष्ठी में विमर्श हेतु मध्य प्रदेश में मृदभांड परंपराएं, मध्य प्रदेश में नवीन अन्वेषण, प्राचीन जल प्रबंधन प्रणाली, पुरातत्व में डिजिटल शिक्षा आयाम, विरासत जागरूकता में सार्वजनिक सहभागिता जैसे अनेक मुख्य बिंदुओं पर प्रस्तावना प्रस्तुत की गई। दो दिन की संगोष्ठी में लगभग 42 से 45 शोध पत्र प्रस्तुत किए गए, जिसमें विभिन्न राज्यों के शोधार्थियों ने भाग लिया। संगोष्ठी में 6 सेशन का आयोजन किया गया। इन सत्रों में डॉ. आलोक श्रोत्रिया, डॉ.चेतराम गर्ग, प्रो. मुकेश कुमार, प्रो. शिवाकांत बाजपेई, डॉ. अर्चना शर्मा, डॉ. मोहनलाल चंद्र सत्र में चेयरपर्सन के रूप में मौजूद थे। डॉ. विनय कुमार, डॉ. मनोज कुमार, प्रो. अवकाश जाधव, प्रो. महेश चंद्र श्रीवास्तव, डॉ. प्रियदर्शनी एम खोबरागड़े, डॉ अतुल कुमार प्रधान सत्र में को-चेयरपर्सन के रूप में उपस्थित थे। डॉ. राघवेंद्र यादव, डॉ.अतुल गुप्ता, डॉ. संजय पेकराऔ, डॉ. अशोक सरवड़े, डॉ. उत्सव आनंद, डॉ. वीरेंद्र सिंह, डॉ. गोविंद सिंह डांगी, डॉ. सुबोध डी गोंर्ल, डॉ .जितेंद्र सिंह आगरा, डॉ जितेंद्र सिंह कानपुर, संगोष्ठी में संसाधन व्यक्तित्व के रूप में उपस्थित थे।
संगोष्ठी में मध्य प्रदेश एवं भारत की पुरातत्व धरोहर पर प्रख्यात विद्वानों और शोधार्थियों ने अपने बहुमूल्य अनुभवों से अवगत कराया। इस कार्यक्रम में उत्खनन, शैलचित्र अध्ययन तथा पुरातत्व के विषय पर विस्तार से चर्चा की गई। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में डॉ. नारायण दास ने सुप्रसिद्ध पुरातत्वविद प्रोफेसर विष्णु वाकणकर के साथ किए गए क्षेत्रीय सर्वेक्षण और उत्खनन कार्यों के अनुभव साझा किये। उन्होंने भीमबेटका, कठोतिया तथा रायसेन जिले के कई स्थलों का विशेष उल्लेख करते हुए बताया कि शैल चित्रों के अध्ययन और उनके सही अर्थ निकालने की चुनौती आज की पीढ़ी के सामने भी बनी हुई है। उन्होंने पर्यटन और परिस्थितिकी को पुरातत्व से जोड़कर नए अवसर निर्मित किये जा सकते हैं ऐसी संभावनाओं को व्यक्त किया। डॉ. संजय कुमार मंजुल, अतिरिक्त महानिदेशक, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने कहा कि भारत की संस्कृति को मध्य प्रदेश को समझे बिना नहीं जाना जा सकता। उन्होंने पुरातत्व में शब्दावली संबंधी समस्याओं के समाधान पर बल दिया तथा यह भी बताया कि मानव पशु प्रवजन तथा सांस्कृतिक संबंधों के अध्ययन के लिए आधुनिक तकनीक का विशेष रूप से उपयोग किया जा सकता है। उन्होंने ए.एस.आई. के शोधों का उल्लेख करते हुए बताया कि चालकोलिथिक काल में रथो के प्रमाण मिले हैं और यह भी कहा कि मध्य प्रदेश की शैल चित्र धरोहर का पुनः सर्वेक्षण आवश्यक है। ताकि इतिहास की इकाइयों को पांटा जा सके, उन्होंने उत्खनन और उसके विश्लेषण के लिए बहुविषयक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
कुलगुरु प्रो. डॉ राजकुमार आचार्य, ने अपने उद्बोधन में कहा कि देश बदल रहा है और यह समय परिवर्तन का है। यदि हम इस समय नहीं बदले तो कुछ भी हासिल नहीं कर पाएंगे। उन्होंने रामसेतु पुल की पुष्टि उपग्रह चित्रों से होने का उदाहरण देते हुए कहा की नई तकनीकी हमेशा नई जानकारीयो को उजागर करने में सहायक होती है। उन्होंने यह भी बताया कि पुरातत्व हमारे अतीत को सहेज कर रखने का माध्यम है, तथा ग्वालियर क्षेत्र की पुरातात्विक धरोहर अभी भी शोधकर्ताओं की प्रतीक्षा कर रही है। अंत में उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि भारत की युवा पीढ़ी विश्व के लिए नए क्षितिज लेकर आएगी।
संगोष्ठी के समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. एम. पी. अहिरवार, विभागाध्यक्ष भारतीय प्राचीन इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग बनारस हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी से उपस्थित थे। अपने उद्बोधन में उन्होंने भारतीय प्राचीन संस्कृति एवं पुरातत्व के नवीन अन्वेषण पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मध्य प्रदेश पुरातात्विक संपदा की धरोहर है। मध्य प्रदेश को केंद्रीय स्तर पर जो पहचान मिलना चाहिए वह नहीं मिली है शोध क्षेत्र एवं अन्य विकास के क्षेत्र में पीछड़ रहा है।
पिछले 200 वर्षों की उपलब्धियां में सांची और खजुराहो ही प्रतिबिंबित हो पाए हैं। अतीत के लगभग 200 वर्षों का इतिहास भी लिखा जाना चाहिए ताकि प्राचीन पाठ्यक्रमों को भी नवीन अन्वेषण से जोड़ा जा सके। राज्य के हर विश्वविद्यालय को शोधो को संकलित करने की आवश्यकता है ताकि समाकलित उपलब्धियां राष्ट्रीय विकास से जोड़ी जा सके।
जीवाजी विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर राजकुमार आचार्य ने कहा कि शिक्षा को ग्रहण करने के साथ संगोष्ठियों द्वारा शोध चिंतन से व्यक्तित्व निर्माण में अवसर मिलते है। शोध पत्रों को सभी मानकों से कर उतारने का प्रयास किया जाना चाहिए। डॉ. अतुल प्रधान उड़ीसा ने सत्रों के अनुभव को साझा करते हुए कहा के मध्य प्रदेश का इतिहास भारत के इतिहास की मापनी है वही डॉ. महेश कुमार, ने मगध यूनिवर्सिटी तथा जीवाजी विश्वविद्यालय की शैक्षणिक गठबंधन की घोषणा की। डॉ. अर्चना शर्मा बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी द्वारा शोध पत्रों की उत्कृष्टता और अनुप्रयोगिता की भूरी भूरी प्रशंसा की।
कार्यक्रम का आभार संगोष्ठी के संयोजक प्रोफेसर एसडी. सिसोदिया ने किया। उन्होंने 14 राज्यों से पधारे हुए संसाधन व्यक्ति, शोधार्थियों, छात्रों, प्राध्यापकों, टेक्नीशियन, मीडिया आदि का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया।

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