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मध्यप्रदेश को समझे बिना भारत की संस्कृति को नहीं जान सकते: डॉ. मंजुल

डॉ. शांतिदेव सिसोदिया द्वारा लिखित सनातन धर्म: इंडियन नॉलेज सिस्टम पुस्तक का विमोचन
ग्वालियर। मध्यप्रदेश को समझे बिना भारत की संस्कृति को नहीं जाना जा सकता। क्योंकि किसी भी प्रकार के ऐतिहासिक और पुरातात्विक विकास को समझने के लिए भारत के हृदय प्रदेश को समझना आवश्यक है। यह बात भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अतिरिक्त महानिदेशक डॉ. संजय कुमार मंजुल ने जीवाजी विश्वविद्यालय के गालव सभागार में कही। वह जीवाजी विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययनशाला, जनजातीय विकास एवं अध्ययन केन्द्र और प्रधानमंत्री उच्चतर शिक्षा अभियान (पीएम-उषा) के संयुक्त तत्वावधान में मध्यप्रदेश के विशेष संदर्भ में पुरातत्व में नवीन प्रवृत्तियां विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। अध्यक्षता जीवाजी विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. राजकुमार आचार्य ने की। मुख्य वक्ता सेवानिवृत्त अधीक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण डॉ. नारायण व्यास, जेयू के कुलसचिव प्रो. राकेश कुशवाह एवं आयोजन सचिव डॉ. शांतिदेव सिसोदिया मंचासीन रहे।
मुख्य अतिथि डॉ. मंजुल ने पुरातत्व में शब्दावली संबंधी समस्याओं के समाधान पर बल दिया। उन्होंने कहा कि मानव-पशु प्रव्रजन तथा सांस्कृतिक संबंधों के अध्ययन के लिए आधुनिक तकनीक का विशेष रूप से उपयोग किया जा सकता है। उन्होंने एएसआई के शोधों का उल्लेख करते हुए कहा कि कि चाल्कोलिथिक काल में रथों के प्रमाण मिले हैं। इसके लिएमध्यप्रदेश की शैलचित्र धरोहर का पुन: सर्वेक्षण आवश्यक है, ताकि इतिहास की खाइयों को पाटा जा सकें। इसके साथ ही उत्खनन और उसके विश्लेषण के लिए बहुविषयक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। आयोजन सचिव डॉ. शांतिदेव सिसोदिया ने संगोष्ठी की अवधारण एवं उद्देश्य पर प्रकाश डाला।
मुख्य वक्ता डॉ. नारायण व्यास ने सुप्रसिद्ध पुरातत्वविद् प्रो. विष्णु वाकणकर के साथ किए गए क्षेत्रीय सर्वेक्षण और उत्खनन कार्यों के अनुभव साझा किए। उन्होंने भीमबेटका, कठोतिया तथा रायसेन के कई स्थलों का विशेष उल्लेख करते हुए बताया कि शैलचित्रों के अध्ययन और उनके सही अर्थ निकालने की चुनौती आज की पीढ़ी के सामने भी बनी हुई है। उन्होंने कहा कि पर्यटन और पारिस्थितिकी को पुरातत्व से जोड़कर नए अवसर निर्मित किए जा सकते हैं। अध्यक्षता कर रहे कुलगुरु प्रो. राजकुमार आचार्य कहा कि देश बदल रहा है और यह समय परिवर्तन का है। यदि हम इस समय नहीं बदले तो कुछ भी हासिल नहीं कर पाएंगे। उन्होंने रामसेतु पुल की पुष्टि उपग्रह चित्रों से होने का उदाहरण देते हुए कहा कि नई तकनीक हमेशा नई जानकारियों को उजागर करने में सहायक होती है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि भारत की युवा पीढ़ी विश्व के लिए नए क्षितिज लेकर आएगी। इस अवसर पर डॉ. शांतिदेव सिसोदिया द्वारा लिखित सनातन धर्म: इंडियन नॉलेज सिस्टम पुस्तक का विमोचन किया गया। साथ ही हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला एवं मगध विश्वविद्यालय गया के साथ एमओयू साइन किये गए। संगोष्ठी में 15 राज्यों के 70 से अधिक प्रतिभागी शामिल हुए। कार्यक्रम का संचालन डॉ. समीक्षा भदौरिया ने किया। इस मौके पर कृतिका प्रधान, आशीष जैन, अमिता खरे, राहुल कुमार, राहुल बरैया, पूर्णिमा पाल, प्रिया सुमन, रचना पाल, वैशाली गुर्जर, डॉ. दीप्ती राठौर, मुक्ता जैन, आनंद कुशवाह, अमित यादव, गंगौत्री मिश्रा सहित विश्वविद्यालय प्राध्यापक, अधिकारी व छात्र छात्राएं मौजूद थे।
दो तकनीकी सत्र में 45 शोधपत्र पढ़े
सेमीनार में दो तकनीकी सत्र हुए। पहले सत्र में प्रो. आलोक श्रोत्रिय अमरकंटक विवि एवं प्रो. एमसी श्रीवास्तव अवधेश प्रताप विवि रीवा ने अध्यक्षता एवं सह अध्यक्षता की। इस सत्र में अर्चना शर्मा, विजय कुमार, स्मिता कुमार, शंभूनाथ यादव, आकाश गेडाम, आशीष शेंडे सहित 30 लोगों ने पेपर प्रस्तुत किए। वहीं दूसरे सत्र में डॉ. चेतराम गर्ग निदेशक डॉ. रामसिंह इतिहास शोध संस्थान हिमाचल प्रदेश एवं प्रो. अवकाश जाधव ने विभागध्यक्ष संत जेवियर कॉलेज मुंबई ने अध्यक्षता एवं सह अध्यक्षता की। इस सत्र में 15 शोधपत्रों पढ़े गए।

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