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नौकरी महीनेभर और तनख्वाह 15 दिन की, पाक में हम गुलाम हमारी बहू-बेटियां उनका खिलौना

जोधपुर. चोखां इलाके में मेरी एक पीठ से बात हो रही है। विष्णुमल, पाकिस्तान से आये अधिकतर रिफ्यूजियों की तरह वह भी चेहरा दिखाने को तैयार नहीं, कहते हैं। वीडियो देखकर वहां छूटे हमारे लोगों को और सताया जाता है। जानते हैं कि इनका कोई आसारा नहीं चाहे जिस हाल में रहें, यहीं रहना है। मुझे पुराने लोग याद आ गये। कुछ पुराने किस्से ससुराल में कभी भी अपने मायके के दुःख मत बताओं वहां भी दुःख मिलेगा।
खानदानी हार की तरह ये खानदानी गुलाम होते हैं
पाक से आये हिन्दू शरणार्थियों पर काम करने वाले एक्टिविस्ट डॉ. ओमेन्द्र रत्नू फोन पर बताते हैं। आदमी अकेले ही जमींदारों के गुलाम नहीं होते। उस पर की औरतें भी होती है। घर में जवान औरत से लेकर बच्चियों तक पर मालिक की नजर रहती है। जब मन चाहे, वह उन्हें तलब कर सकते हैं। मना कर देंगी तो भी रेप होगा। मारपीट, पति की तनख्वाह कटेगी वह अलग।
पाकिस्तान का मीरपुर विशेष प्रांत
मार्च से जून तक यहां की हवायें एक खास खुशबू में डूबी रहती है। आमों की महल, किस्म-किस्म के आम बाग-बाडि़यों में दिखेंगे। टोकरियों में सजाकर यह खास फल वहां के खास लोगों तक जाता है। लकड़ी की पेटियों में भरकर 7 समंदर लांघता है। बस, खेत किनारे बनी झोपडि़यों तक नहीं पहुंच पाता। इन्हीं में एक झोपड़ी विष्णु की भी थी। विष्णु बताते हैं कि मिट्टी और फूस से बना घर था। वर्षा में पानी आसमान से कम, हमारी झोपड़ी से अधिक टपकता। गर्मियों में सूरज वहीं वहीं डेरा डाले रहता। यह पुश्तैनी झोपड़ी थी। मेरे बाबा भी यहीं रहते। उनके बाबा भी और अब मेरा परिवार यहां पल रहा था। पक्का घर होता भी कैसे। महीनाभर काम तरे तो 15 दिनों की तनखा मिलती। किसी न किसी बात पर कटौती हो ही जाती। देर से आये, पैसे काटो, रूककर बीड़ी पी ली। पैसे काटो, वर्षा नहीं हुई। तनखा रोक लो, फसल
गल गयी, पैसे नहीं मिलेंगे।

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