विरासत को सुरक्षित रखते हुए उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और चिकित्सा जैसी सुविधाओं के माध्यम से मुख्यधारा से जोड़ा जाना चाहिए- प्रो. राकेश कुशवाह

जेयू: दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ समापन, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश को जिंदा रखने की आवश्यकता है: डॉ.राजकुमार आचार्य
*पारंपरिक ज्ञान को भारतीय ज्ञान परंपरा से जोड़ने की आवश्यकता है: डॉ.मनोज कुमार कुर्मी *
ग्वालियर। जनजातीय समाज के लिए ठोस और व्यावहारिक कार्य किए जाएं। उनकी विरासत को सुरक्षित रखते हुए उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और चिकित्सा जैसी सुविधाओं के माध्यम से मुख्यधारा से जोड़ा जाना चाहिए। सहरिया जनजाति की कला, जीवन-शैली और स्वावलंबी परंपराएं आज भी जीवंत हैं। विकास की प्रक्रिया में कला की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसलिए विकास और सांस्कृतिक स्वरूप के बीच निरंतर संवाद स्थापित होना चाहिए। यह बात रविवार को महाराजा छत्रसाल बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय छतरपुर के कुलगुरू प्रो. राकेश कुशवाह ने जीवाजी विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययनशाला में “सहरिया जनजातियों में सामाजिक सांस्कृतिक स्वरूप के बदलते परिदृश्य” विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि कही।
विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीक्षक डॉ. मनोज कुमार कुर्मी ने कहा कि हमें अपने पारंपरिक ज्ञान को गहराई से समझने की आवश्यकता है। यह तभी संभव है जब पारंपरिक ज्ञान को भारतीय ज्ञान परंपरा से जोड़ा जाए। सहरिया जनजाति को समझने के लिए केवल अकादमिक अध्ययन पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनके बीच जाकर उनके जीवन को निकट से देखना और समझना होगा। इतिहास के साथ न्याय करना हमारा दायित्व है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जेयू के कुलगुरु डॉ. राजकुमार आचार्य ने कहा कि जो समाज अपने सांस्कृतिक परिवेश से जुड़ा रहता है, उसका आचरण और व्यवहार अलग व विशिष्ट होता है। भारत समरूपता और अनेकता में एकता का श्रेष्ठ उदाहरण है। सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश को जीवित रखना अत्यंत आवश्यक है। सहरिया जनजाति का जल-जंगल-जमीन के प्रति समर्पण उल्लेखनीय है और प्रकृति संरक्षण में उनका योगदान सदियों से रहा है।कार्यक्रम की शुरुआत प्रो. शांतिदेव सिसौदिया के स्वागत भाषण से हुई। सभी अतिथियों को शॉल, श्रीफल एवं स्मृति-चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। संगोष्ठी के दौरान रुचि श्रीवास्तव, राजकुमार गोखले, दीप्ति, डॉ. अमिता खरे, सृष्टि भदौरिया, विजय प्रताप सिंह सहित शोधार्थियों ने अपने-अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।
दो दिवसीय संगोष्ठी में कुल लगभग 20 शोध पत्रों का वाचन हुआ, जिनमें सहरिया जनजाति के सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और समकालीन पहलुओं पर गहन विमर्श किया गया। कार्यक्रम का संचालन समीक्षा भदौरिया ने किया, जबकि आभार प्रदर्शन संगोष्ठी के आयोजन सचिव प्रो. शांतिदेव सिसौदिया द्वारा किया गया। इस अवसर पर डॉ.चेतराम गर्ग, डॉ. राकेश कुमार शर्मा, डॉ.नवनीत गरूड़ , राहुल बरैया, सामिन, पूर्णिमा यादव, प्रिया सुमन, वैशाली गुर्जर, समीक्षा सिंह, अमिता खरे, डॉ. अमित यादव, डॉ. मुक्ता जैन, डॉ. दीप्ति राठौर, रेणु गर्ग, सहित बड़ी संख्या में शोधार्थी एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

