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जेयू: प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययनशाला में 2 दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य शुभारंभ

जनजातीय समाज को समझने के लिए उनके बीच जाना जरूरी: डॉ. मुकेश मिश्रा
ग्वालियर। जीवाजी विश्वविद्यालय की प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययनशाला में “सहरिया जनजातियों में सामाजिक-सांस्कृतिक स्वरूप के बदलते परिदृश्य” विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शनिवार को गरिमामय शुभारंभ हुआ। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सचिव डॉ. ओम उपाध्याय रहे, जबकि बीज वक्ता के रूप में दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान के निदेशक डॉ. मुकेश कुमार मिश्रा उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलगुरु डॉ. राजकुमार आचार्य ने की।
पारंपरिक ज्ञान और आधुनिकता में सेतु की जरूरत
मुख्य अतिथि डॉ.ओम उपाध्याय ने अपने संबोधन में कहा कि सहरिया जनजाति का जीवन-दर्शन प्रकृति और वन के साथ सहअस्तित्व पर आधारित रहा है। उनकी आत्मनिर्भर व्यवस्था, लोकगीत, लोककथाएँ और आस्थाएँ प्रकृति संरक्षण का जीवंत उदाहरण हैं। औपनिवेशिक काल में उनकी पारंपरिक संरचना को तोड़कर उन्हें मजदूरी की ओर धकेला गया, जिससे भाषा और संस्कृति का क्षरण तेज हुआ। उन्होंने जोर देकर कहा कि पारंपरिक और आधुनिकता के बीच सार्थक संवाद स्थापित किए बिना समावेशी विकास संभव नहीं है।
किताबों से नहीं, समुदाय के बीच जाकर होगा सही अध्ययन
बीज वक्ता डॉ. मुकेश कुमार मिश्रा ने कहा कि सहरिया समाज का भी अपना समृद्ध इतिहास है। शहरीकरण और पारंपरिक भू-क्षेत्र से कटाव के कारण उनकी जीवनशैली में बदलाव आया है। त्योहारों और दैनिक जीवन में उनके बीच जाकर ही उनके वास्तविक तौर-तरीकों, सौंदर्यबोध, घरों की सजावट, जड़ी-बूटियों और औषधीय ज्ञान को समझा जा सकता है। उन्होंने लोकज्ञान के महत्व को रेखांकित करते हुए मैदानी अध्ययन को अनिवार्य बताया।
एमओयू और पुस्तक विमोचन:
संगोष्ठी के दौरान ठाकुर रामसिंह शोध संस्थान और जीवाजी विश्वविद्यालय के बीच समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए, जिससे अकादमिक सहयोग को नई दिशा मिलेगी। साथ ही प्रो. शांतिदेव सिसौदिया की पुस्तक “न्यू ट्रेंड्स इन आर्कियोलॉजी” का लोकार्पण किया गया।
शोधपत्र प्रस्तुतियां और सहभागिता:
कार्यक्रम में समीक्षा भदौरिया, राहुल यादव, डॉ. अमिता खरे, डॉ. शंभूनाथ यादव, डॉ. पूनम रानी, अजय सिंह राठौर, डॉ. प्रेमलता सहित अनेक शोधार्थियों ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए। संचालन समीक्षा भदौरिया ने किया तथा आभार डॉ. नवनीत गरूड़ ने व्यक्त किया।
इस अवसर पर डॉ. राजेंद्र बांदिल, डॉ. विवेक भदौरिया, डॉ. चेतराम गर्ग, डॉ. राकेश कुमार शर्मा, डॉ. राघवेंद्र यादव, डॉ. राजेंद्र सिंह पंवार, प्रो. जे.एन. गौतम, प्रो. विवेक बापट, प्रो. एस.एन. मोहापात्रा, प्रो. हेमंत शर्मा, प्रो. राजू वैध, डॉ. जी.के. शर्मा, डॉ. सपन पटेल, डॉ. निमिषा जादौन, डॉ. विमलेंद्र सिंह सहित बड़ी संख्या में शिक्षक, शोधार्थी और छात्र-छात्राएं उपस्थित रहीं।संगोष्ठी का उद्देश्य सहरिया जनजाति के बदलते सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य को बहुआयामी दृष्टि से समझना और पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक विमर्श से जोड़कर संरक्षण-संवर्धन करना है।

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