तानसेन समारोह-मातृशक्ति के भावपूर्ण सुरों से गूंजी किले की प्राचीर
संवेदना, साधना और सौंदर्य की त्रिवेणी बनी 101वें तानसेन समारोह की अंतिम सायंकालीन संगीत सभा
ग्वालियर, -भारतीय शास्त्रीय संगीत की परम्परा, साधना और नारी-सृजनात्मक शक्ति का अद्भुत संगम शुक्रवार को उस समय साकार हुआ, जब 101वें तानसेन समारोह की अंतिम सायंकालीन संगीत सभा ऐतिहासिक ग्वालियर दुर्ग के गूजरी महल के प्रांगण में भावपूर्ण वातावरण में सम्पन्न हुई। परम्परानुसार मातृशक्ति को समर्पित इस विशेष संध्या में देश की प्रतिष्ठित महिला संगीतज्ञों ने गायन एवं वादन की प्रस्तुतियों से श्रोताओं को सुर, लय और भाव की अविस्मरणीय अनुभूति कराई। ध्रुपद की गंभीर शुरुआत से लेकर खयाल, ठुमरी और तालवाद्य की सधी हुई प्रस्तुतियों तक यह सभा संवेदना, साधना और सौंदर्य की सजीव अभिव्यक्ति बन गई।
ध्रुपद के गंभीर स्वर से हुआ सभा का मंगलारंभ
तानसेन समारोह की सुदीर्घ परम्परा के अनुरूप अंतिम दिवस की संगीत सभा का शुभारंभ ध्रुपद गायन से हुआ। तानसेन संगीत महाविद्यालय, ग्वालियर के शिक्षक एवं विद्यार्थियों ने राग भूपाली में आबद्ध चौताल की बंदिश “केते दिन गए लेखे” का सलीकेदार गायन प्रस्तुत किया। पखावज पर श्री जगत नारायण शर्मा ने सशक्त संगत कर ध्रुपद की गरिमा को और प्रभावी बनाया।
परम्परा और सुदीर्घ साधना का सजीव प्रतिबिंब बना गायन
सभा की पहली प्रमुख प्रस्तुति दिल्ली की वरिष्ठ गायिका डॉ. नलिनी जोशी के खयाल गायन की रही। किराना घराने की सुविख्यात गायिका एवं पद्मविभूषण डॉ. प्रभा अत्रे की शिष्या डॉ. नलिनी जोशी ने राग यमन में तीन रचनाएँ प्रस्तुत कीं। विलंबित एकताल की बंदिश “सुमिरन श्री गणेश” से उन्होंने सुरों की भावभूमि रची, वहीं द्रुत तीनताल की बंदिश “जय जय श्री गणेश जय जय” से वातावरण को दिव्य अनुभूति से भर दिया। द्रुत एकताल में संक्षिप्त तराना प्रस्तुत कर उन्होंने अपनी प्रस्तुति को विस्तार दिया। ये सभी रचनाएँ उनकी गुरु डॉ. प्रभा अत्रे द्वारा रचित थीं। अंत में भजन के साथ उन्होंने अपने गायन को विराम दिया। हारमोनियम पर श्री दामोदर घोष और तबले पर उस्ताद अख्तर हसन खां ने सधी हुई संगत की।
ताल, लय और परम्परा की सधी थाप से निहाल हुए श्रोता
गायन के पश्चात इंदौर से पधारीं डॉ. संगीता अग्निहोत्री ने तबला वादन से सभा को तालात्मक ऊँचाइयों तक पहुँचाया। पंडित दिनकर मुजुमदार की शिष्या डॉ. संगीता ने पारम्परिक शैली में उठान, पेशकार, कायदे, रेले एवं विशिष्ट गतें प्रस्तुत कर अपनी सुदृढ़ तालीम और परम्परा का प्रभावी परिचय दिया। सारंगी पर श्री आबिद हुसैन खान ने लहरा देकर वादन को और समृद्ध किया।
‘अब के सावन घर आजा’ में सिमटा श्रृंगार और भाव
इसके बाद दिल्ली की सुश्री उमा गर्ग ने अपनी घरानेदार और भावपूर्ण गायिकी से श्रोताओं का मन मोह लिया। उन्होंने राग कलावती में विलंबित एकताल की बंदिश “पिया घर आए जिया अति सुख पाए” से गायन आरम्भ किया। द्रुत तीनताल की बंदिश “साजन आए” ने वातावरण को श्रृंगार रस से सराबोर कर दिया। तत्पश्चात राग चंद्रकोश में झपताल की बंदिश “कांधे कमलिया” प्रस्तुत की। अंत में राग तिलक कामोद में पारम्परिक ठुमरी “अब के सावन घर आजा” ने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। तबले पर उस्ताद अख्तर हसन खां एवं हारमोनियम पर श्री जाकिर धौलपुरी ने सशक्त संगत दी।
“पडूं तोरी पैयां…..
सभा का समापन विदुषी मधुमिता नकवी के सधे हुए गायन से हुआ। उन्होंने राग नंदकोंस में संक्षिप्त आलाप के पश्चात विलंबित एकताल और द्रुत बंदिश “पड़ूं तोरी पैयाँ” प्रस्तुत की। राग की बढ़त में उनके स्वर और तानों की अदायगी अत्यंत प्रभावी रही। इसके बाद उन्होंने कौंसी ध्वनि में दादरा तथा शिवरंजनी में राम भजन प्रस्तुत कर समारोह को भावपूर्ण पूर्णता प्रदान की। तबले पर संजय राठौर और हारमोनियम पर दीपक खसरावत ने संगत की।

