बलात्कार की FIR निरस्त करने से हाईकोर्ट ने मना किया, सहमति, दबाव और वादे की सच्चाई सबूतों से तय होगी, अगली सुनवाई 4 को
ग्वालियर. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच की एकलपीठ ने बलात्कार और पॉक्सो एक्ट के गंभीर मामले में दायर याचिका को खारिज करते हुए एफआईआर रद्द करने से साफ मना कर दिया है। न्यायालय ने कहा है कि आरोपी द्वारा दिये गये तर्क जैसे डीएनए रिपोर्ट का नकारात्मक होना। एफआईआर दर्ज करने में देरी और लम्बे समय तक चले संबंधों में सहमति होने का दावा ऐसे मुद्दे हैं। जिन्हें केवल ट्रायल के दौरान ही परखा जा सकता है। धारा 482 के तहत एफआईआर निरस्त करने का कोई ठोस आधार नहीं बनता है।
पीडि़ता ने दतिया जिले के बड़ोनी थाने में दर्ज कराई गयी रिपोर्ट थी। उसके मुताबिक 2019 से 2025 तक आरोपी ने शादी का झांसा देकर और धमकी देकर लगातार संबंध बनाये। जब पीडि़ता के परिवार ने उसकी सगाई तय की तो आरोपी ने बदनाम करनेकी धमकी देकर सगाई तुड़वा दी और बाद में शादी करने से भी मुकर गया। इन आधारों पर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ बलात्कार और पॉक्सो एक्ट की धाराओं में एफआईआर दर्ज की गयी है।
सहमति से थे संबंध-आरोपी
आरोपी की तरफ से हाईकोई ने दलील दी गयी कि एफआईआर दर्ज होने के समय पीडि़ता की आयु 21 वर्ष थी। दोनों के बीच सालों तक सहमति से संबंध रहें हैं। यह भी बताया गयाकि यह एक टूटा हुआ प्रेम संबंध है। न कि कोई आपराधिक मामला। आरोपी ने अपने पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला भी दिया है।
हाईकोर्ट ने दलीलें खारिज कीं
कोर्ट ने कहा कि सहमति वास्तव में थी या शादी का झांसा देकर संबंध बनाए गए यह तथ्यात्मक मुद्दा है, जो ट्रायल में ही तय हो सकता है। धमकी, भावनात्मक दबाव और वादाखिलाफी जैसे आरोप गंभीर हैं, जिनकी जांच आवश्यक है। कोर्ट ने यह भी कहा कि नकारात्मक डीएनए रिपोर्ट पुराने संबंधों या शोषण को पूरी तरह नकार नहीं सकती। इसलिए एफआईआर रद्द करने का कोई आधार नहीं बनता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अभियोजन के सभी पहलुओं की जांच ट्रायल कोर्ट ही करेगा। हाईकोर्ट स्तर पर FIR खत्म नहीं की जा सकती। इस मामले में अगली सुनवाई 4 दिसंबर को होगी।

