राज्य शासन गलत अधिकारियों को बचाने में जुटा, गलती नही तो पुनर्विचार याचिका क्यों दायर की, DGP से मांगा जवाब
ग्वालियर. मध्यप्रदेश के डीजीपी कैलाश मकवाना के हलफनामे पर हाईकोर्ट की एकल पीठ ने कड़ी नाराजगी जताई है। न्यायालय ने गुरूवार को ग्वालियर एसएएफ की 14वीं बटालियन आरक्षक रजनेश सिंह भदौरिया की विभागीय जांच से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान ने कहा है कि राज्य शासन एक ओर तो दावा करता है कि जांच नियमों के अनुसार की गयी तो वहीं दूसरी ओर उन्हीं अधिकारियों को बचाने में लगा है। जिन्होंने अदालत के सामने अधूरा और गलत तथ्य प्रस्तुत किया है। न्यायालय ने असिस्टेंट कमांडेंट शैलेन्द्र भारती की भूमिका पर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा है कि उन्होंने जो शपथ पत्र पर जबाव पेश किया है। उसमें कई महत्वपूर्ण तथ्य छिपाये हैं उसमें कई अहम तथ्य छिपाये गये है। इस पर अदालत ने कहा है कि उनका जवाब टालामटोल वाला और जानबूझकर भ्रामक था। ओआईसी(ऑफीसर इन चार्ज) किसी कर्मचारी की मदद करने के लिये नहीं, बल्कि राज्य शासन की तरफ से सही तथ्य रखने के लिये नियुक्त किये जाते हैं।
क्या है मामला
ग्वालियर की एसएएफ बटालियन 14 आरक्षक रजनेश सिंह भदौरिया की विभागीय जांच से जुड़ा है। भदौरिया का आरोप था कि जांच अधिकारी ने प्रस्तुतिकरण अधिकारी नियुक्त न कर स्वयं ही अभियोजक की भूमिका निभाई। यह कार्यवाही नियमों और पूर्व न्यायिक निर्णयों के विपरीत थी। इसी आधार हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने 28 अगस्त 2024 को रजनेश के पक्ष में फैसला दिया। इस फैसले के खिलाफ राज्य शासन ने रिव्यू पिटीशन दायर की।
DGP का शपथ पत्र
DGP ने अपने शपथ पत्र में कहा है कि तत्कालीन ओआईसी शैलेंद्र भारती की कोई दुर्भावना नहीं थी, इसलिए उनके खिलाफ किसी भी प्रकार की कार्रवाई आवश्यक नहीं है और विभागीय स्तर पर उन्हें दोषमुक्त माना जाता है। इस जवाब पर ही हाईकोर्ट ने कड़ी नाराजगी व्यक्त करते हुए उपरोक्त टिप्पणी की। कोर्ट ने अतिरिक्त महाधिवक्ता को स्पष्ट रूप से निर्देश दिए कि डीजीपी के आदेश को न्यायालय के सामने तर्कसंगत तरीके से नियोचित ठहराएं यदि आवश्यकता हो तो डीजीपी स्वयं पूरक हलफनामा जमा करें ।
न्यायालय ने यह भी सवाल उठाये हैं कि जब शासन का दावा है कि उसने कोई गलती नहीं की, तो फिर उसने पुर्नविचार याचिका क्यों दायर की। हाईकोर्ट ने डीजीपी से इस मामले में जवाब तलब किया है अगली सुनवाई 7 नवम्बर 2025 निर्धारित की है।
इस मामले में शासन का तर्क
न्यायालय में पुनर्विचार याचिका में बहस पर शासन की तरफ से तर्क दिया गया है कि रजनेश की जांच में एक प्रेजेंटिंग ऑफीसर नियुक्त किया गया था। प्रेजेंटिंग ऑफीसर ने बहस की थी। न्यायालय ने पाया िकमूल रिट याचिका के जवाब में राज्य की ओर से दायर हलफनामा (शैलेन्द्र भारती द्वारा) में इस अहम तथ्य को स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया और याचिकाकर्त्ता के आरोपों का एक अस्पष्ट जवाब दिया गया। इसको लेकर न्यायालय ने डीजीपी से शपथ पत्र मांगा था। डीजीपी ने शपथ पत्र में जिम्मेदार अधिकारी का बचाव किया।

