शैक्षणिक भ्रमण की श्रृंखला में आज अजयगढ़ दुर्ग एवं खजुराहो के पश्चिमी मंदिर समूह का किया भ्रमण
ग्वालियर -प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययन शाला, जीवाजी विश्वविद्यालय, के छात्र/छात्राएँ आज अजयगढ़ किला, मध्यप्रदेश जो पन्ना जिले में स्थित है। इसे चंदेल वंश के राजाओं ने 9वीं से 12वीं शताब्दी के बीच बनवाया। इसके बाद यह किला विभिन्न शासकों के अधीन रहा, जिनमें बुंदेला और मुगल शामिल थे। यह किला विंध्य पर्वत श्रृंखला की पहाड़ियों पर बना हुआ है और समुद्र तल से लगभग 688 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसे बुंदेला राजवंश द्वारा बनवाया गया था और यह ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
वास्तुकला एवं स्थापत्य
किला उत्कृष्ट वास्तुकला का उदाहरण है। इसमें पत्थरों से बनी ऊंची दीवारें, दरवाजे और गढ़ संरचनाएं हैं। किले के भीतर जलाशय और प्राचीन मंदिर भी मौजूद हैं। यहां से केन नदी का सुंदर दृश्य देखा जा सकता है। किले के अंदर कई प्राचीन मूर्तियां और शिलालेख रॉक कट शैली में निर्मित किए गए हैं जिनमें हिंदू एवं जैन धर्म की मूर्तियों को बनाया गया हैं
गुप्त काल की वास्तुकला अपनी सादगी और कलात्मक भव्यता के लिए जानी जाती है। अजयगढ़ किले में पत्थरों पर की गई नक्काशी, मूर्तियां और मंदिर निर्माण में गुप्तकालीन शैली की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। भगवान शिव को समर्पित गुप्त कालीन मंदिरो की स्थापत्य शैली के साथ साथ दुर्ग के सामरिक और रणनीतिक महत्व को समझा यहां मंदिर प्रांगण में कुल तीन मंदिर जिनमें दो मंदिरों में गर्भ ग्रह, सभा मंडप, मंडप बनाए गए है और एक मंदिर में तीन ओर से प्रवेश द्वार और तीन तलीय बनाया गया हैं एक अन्य मंदिर जो अर्द्धनिर्मित मंदिर हैं जिसका शिखर ऊंचा बनाने की कोशिश की गई यह मंदिर पूर्ण रूप से अपूर्ण है। ये मंदिर गुप्त कालीन मंदिर के मंदिर स्थापत्य कला के अंतिम मंदिर श्रेणी में आते है जो लगभग 8- 9वीं शताब्दी के हैं साथ ही गुप्तों द्वारा जल प्रबंधन प्रणाली के अंतर्गत जल संरक्षण और प्रबंधन पर जोर दिया गया था। अजयगढ़ किले में मौजूद जलाशय और सरोवर गुप्तकालीन तकनीकों और योजनाओं की झलक भी देखने को मिलती हैं।
अजयगढ़ दुर्ग के बाद में खजुराहो के पश्चिमी मंदिर समूह में कंदरिया महादेव, लक्ष्मण मंदिर, वराह मंदिर, नंदी मंडप, मतंगेश्वर आदि चंदेल कालीन मंदिरों का छात्र/छात्राओं ने अवलोकन किया इस अवसर पर प्रो शान्तिदेव सिसोदिया, विभागाध्यक्ष ने मंदिर स्थापत्य के विकाश को समझाया कि गुप्त काल से चंदेलकाल तक मंदिर वास्तु में कौन-कौन से मंदिर वास्तु अंगो का उत्तरोत्तर विकास कैसे हुआ जिसको अजयगढ़ दुर्ग के गुप्त कालीन एवं खजुराहो के मंदिर मंदिर स्थापत्य में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता हैl
इस अवसर पर छात्रों ने व्यवहारिक रूप से इसे बहुत ही सरलरूप से समझा l इस अवसर पर शोध छात्र राहुल बरैया, राजकुमार गोखले एवं सामिन खान के साथ- साथ विश्वविद्यालय के वाहन चालक असलम खान एवं विशाल के साथ सभी छात्र/छात्राएँ भी उपस्थित थे l

