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इस गीत की भावनाओं ने देश को आजादी दिलाई-जयप्रकाश राजौरिया

वंदे मातरम सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि देश के प्रति प्रेम और समर्पण का प्रतीक है- पवैया
ग्वालियर – राष्ट्रगीत वंदे मातरम् के आज शुक्रवार को 150 साल पूरे हो गए हैं। इस मौके पर पूर्व मंत्री एवं महाराष्ट्र के सहप्रभारी भाजपा ने शुक्रवार को ग्वालियर के वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई समाधि स्थल पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किया। आज पूरा भारत कोने-कोने में वंदे मातरम् की 150 वीं वर्षगांठ मना रहा है। जब मैं वंदे मातरम् कहता हूं तो मेरा रोम-रोम रोमांचित हो जाता है। वंदे मातरम् दो शब्द का नाम नहीं है, वंदे मातरम् देशभक्ति का परिचाक शरीर का मंत्र कहा जाता है। जो शक्ति मंत्र में होती है वही शक्ति वंदे मातरम में होती है। अगर वह केवल दो शब्द होते तो आजादी की लड़ाई लड़ते समय खुशीराम बोस की उम्र 18 साल थी जब उन्होंने एक अंग्रेज की हत्या कर दी थी तो उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी, जब उन्हें फांसी के लिए ले जाया जा रहा था तब उनसे उनकी अंतिम इच्छा पूंछी तो उन्होंने कहा कि एक हाथ में मैं गीता की किताब लेकर जाऊंगा और कंठ में वंदे मातरम् बोलने के बाद ही मैं फांसी के फंदे पर झुलूंगा। अगर ये शब्द होते तो अपनी सांस को खुशीराम वंदे मातरम् के लिए अर्पित नहीं करते।
उन्होंने कहा कि मदनलाल ढींगरा को जब फांसी दी गई तो उन्होंने फांसी का फंदा अपने गले में लेने से पहले बोला वंदे मातरम् और मां से कहा कि मैं फिर से धरती पर जन्म लूंगा और अंग्रेजो से फिर लड़ाई लडूंगा। इसी तरह जब बिस्मिल जी को फांसी दी गई तो उनकी अंतिम इच्छा थी कि वेद लक्ष्णा गौ की दो बूंद मेरे गले में डाल दो और खुली हवा में वंदे मातरम् कहने दो। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम इस देश की आजादी की लड़ाई का कलम से निकला हुआ सबसे बड़ा हथियार था।
बंकिम चंद्र चटर्जी ने वंदे मातरम् को 7 नवंबर 1875 को लिखा
उन्होंने कहा कि भारत के राष्ट्रगीत वंदे मातरम् को बंकिम चंद्र चटर्जी ने 7 नवंबर 1875 को अक्षय नवमी के पावन अवसर पर लिखा था। यह पहली बार उनकी पत्रिका बंगदर्शन में उनके उपन्यास आनंदमठ के हिस्से के रूप में छपा था। जब 1875 में बंकिम चंद्र ने बंगदर्शन में वंदे मातरम प्रकाशित किया, तो कुछ लोगों ने सोचा कि यह सिर्फ एक गीत है। हालांकि, धीरे-धीरे, वंदे मातरम् भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लाखों लोगों की आवाज बना। एक ऐसी आवाज, जिसने हर भारतीय की भावनाओं की प्रतिध्वनि किया।उन्होंने कहा कि 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने मंच पर वंदे मातरम् गाया। यह पहला मौका था जब यह गीत सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय स्तर पर गाया गया। सभा में मौजूद हजारों लोगों की आंखें नम थीं।
इस अवसर पर जिलाध्यक्ष जयप्रकाश राजौरिया ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के आव्हान पर देशभर में जगह-जगह भाजपा राष्ट्रगीत वंदे मातरम् की 150 वीं वर्षगांठ मना रही है। इसी क्रम में ग्वालियर में भी राष्ट्रगीत वंदे मातरम् की 150 वीं वर्षगांठ धूमधाम से मनाई जा रही है। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् का शब्द जैसे ही हमारे जहन में आता है तो व्यक्ति राष्ट्र की भावना से ओतप्रोत हो जाता है और देश के लिए कुछ करने की सोचने लगता है। जब 1857 में की क्रांति के बाद लोगों को लगा कि देश में कोई ऐसा गीत बनना चाहिए जिससे लोगों के दिलों के अंदर राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो और देश की स्वतंत्रता के लिए वरदान हो जाए। इस गीत की भावनाओं ने देश को आजादी दिलाई। इस गीत की वजह से हमारे क्रांतिकारी खुशी-खुशी फांसी पर चढ़ गए। कार्यक्रम का संचालन महिला मोर्चा की जिला महामंत्री श्रीमती करुणा सक्सेना ने किया।

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