ग्वालियर की लुप्त हो रही शिल्प कला को मिल सकेगी एक नई पहचान’
ग्वालियर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना से अब ग्वालियर में लुप्त हो चुके मूर्तिशिल्प को फिर से एक नयी पहचान मिलने की आस जगी है, तो साथ ही यहाँ के मुर्ति शिल्पियो को भी आत्मनिर्भर बनने का जरिया मिला है। ग्वालियर स्मार्ट सिटी द्वारा ग्वालियर के स्थानीय शिल्प कला और शिल्पियो को मुख्य धारा में जोडकर आत्मनिर्भर बनाने का कार्य किया जा रहा है।
ग्वालियर स्मार्ट सिटी सीईओ श्रीमती जयती सिंह नें जानकारी देते हुये बताया कि ग्वालियर स्मार्टसिटी द्वारा वेस्ट टू आर्ट परियोजना में स्थानीय मूर्ति कला औऱ शिल्पियो को शामिल किया जा रहा है। ताकि लुप्त हो रही ग्वालियर की प्राचीन मृणशिल्प को पुर्नजीवित किया जा सके और इन्हे बनाने वाले शिल्पियो को रोजगार के अवसर मिल सके। उन्होने बताया कि ग्वालियर स्मार्ट सिटी के वेस्ट टू आर्ट योजना के अंतर्गत शहर के विभिन्न सार्वजनिक स्थलो पर अपशिष्ठ और धातु स्क्रैप से 20 स्कल्पचरो को मूर्तिकारो से तैयार कर लगवाया जायेगा। इस परियोजना की कुल लागत 98 लाख रुपये है। श्रीमती सिंह नें बताया कि इस योजना में अब स्थानीय कला औऱ उनको बनाने वाले शिल्पियो को शामिल करने से ग्वालियर की इस मृणशिल्प को देश विदेश में एक पहचान मिल सकेगी तो वही इस कला के जानकारो को भी आत्मनिर्भर बनाने में सहायक होगी।
श्रीमती सिंह नें जानकारी देते हुये बताया कि इस योजना के प्रथम चरण में चार स्कल्पचर्स जिनमे गांधी जी की प्रतिमा, चरखा, सरौद और सौनचिरैया के स्कल्पचर्स बनकर तैयार है, जिनमे से सौनचिरैया और गांधी जी का चरखा को स्थापित कर दिया गया है। औऱ अन्य को स्थापित करने का कार्य भी गति पर है।
मृणशिल्प से थी पहले ग्वालियर की पहचान
गौरतलब है कि मृणशिल्प की पहले ग्वालियर में एक पहचान थी। दीवाली.दशहरे के समय यहां का जिवाजी चौक जिसे महाराज बाड़ा भी कहा जाता हैए में खिलौनों की दुकाने बड़ी संख्या में लगती थी। मिटटी के ठोस एवं जल रंगों से अलंकृत वे खिलौने अधिकांशतः बनना बन्द हो गए हैं। यहां बनाये जाने वाले मृणशिल्पों में अनुष्ठानिक रुप से महत्वपूर्ण महालक्ष्मी का हाथी, हरदौल का धोड़ा, गणगौर, विवाह के कलश, टेसू, गौने के समय वधू को दी जाने वाली चित्रित मटकी आदि भी शामिल है। अब स्मार्ट सिटी के इस प्रयास से इसे बनाने वाले समुदाय में एक नयी आस जगी है उनका मानना है कि स्मार्ट सिटी द्वारा इस कला को आगे बढाने और बाजार उपलब्ध करवाने से उनकी इस कला को एक नया आयाम मिल सकेगा साथ ही उन्हे आत्मनिर्भर बनने में सहायक सिद्ध होगा।