Newsमप्र छत्तीसगढ़

अरावली विवाद-’अरावली के इन पहाड़ों का सीना छलनी हुआ तो क्या सब कुछ होगा दांव पर

अरावली की नई परिभाषा से तमाम पर्यावरणविद् चिंतित हैं (Photo-ITG)
नई दिल्ली. देश की सबसे पुरानी पर्वतमाला अरावली को लेकर इन दिनों पूरे देश में बहस छिड़ी हुई है। सवाल सिर्फ एक परिभाषा का नहीं, बल्कि उत्तर भारत के भविष्य, पर्यावरण और जीवन का है। ऐसा आरोप लगाया है कि अरावली की नयी परिभाषा बदलकर खनन को आसान बनाया जा रहा है। जिससे आने वाले वर्षो में यह पहाड़ पूरी तरह से खत्म हो सकते हैं। आज राजस्थान के अलग-अलग शहरों में इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी हुए है। यह ऐलान हुआ है कि 24 दिसम्बर से इसके खिलाफ एक जनयात्रा निकाली जायेगी। यह बड़ी बात यह है कि केन्द्र सरकार इस मामले में सभी आरोपों से मना कर रही है। उसका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस परिभाषा को स्वीकार किया है उसे लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है।


सबसे पहले आपको यह बताते हैं कि यह पूरा विवद हो क्यों रहा है । इस विवाद की जड़ में सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला है। सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की पहाडि़यों में अवैध खनन को रोकने के लिये केन्द्र सरकार से जवाब मांगा था। अदालत का कहना है कि अभी अरावली की पहाडि़यों को लेकर कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है। सभी राज्य अपने हिसाब से यह तय करते हैं कि वह किस पहाड़ को पहाड ़मानेंगे और किस पहाड़ पर खनन करने की इजाजत देंगे।


कंफ्यूजन ऐसे हुआ शुरू
इसी कन्फ्यूजन को दूर करने के लिये केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने एक कमेटी बनाई थी। इस कमेटी ने जिन सिफारिशों के बारे में सुप्रीम कोर्ट को बताया। इन्हीं पर अब विवाद हो रहा है। अब यह सिफारिशें कौन सी थी। ऐसे समझिये इनमें यह लिखा है कि अगर किसी एक या उससे अधिक पहाड़ों की ऊंचाई100 मीटर से अधिक है। ऐसे मामलों में 500 मीटर के पूरे इलाके को अरावली को अरावली रेंज माना जायेगा। उदाहरण के लिये अगर प्वॉइंट ए पर कोई पहाड़ है। उसकी ऊंचाई 100 मीटर से अधिक है तो ऐसे मामले में उस पहाड़ के 500 मीटर के दायरे को अरावली रेंज मान लिया जायेगा। वहां किसी भी प्रकार के खनन की इजाजत नहीं दी जायेगी।
तीन अहम सवाल
अब यहां तीन सवाल बहुत महत्वपूर्ण हैं.
पहला सवाल- खनन माफियाओं की नज़र अरावली के पहाड़ों पर क्यों रहती है?
दूसरा- अरावली के पहाड़ उत्तर भारत की Ecology के लिए ज़रूरी क्यों हैं ?
तीसरा- अगर ये पहाड़ भविष्य में खत्म हो गए तो इसका उत्तर भारत के लोगों पर क्या असर होगा?
तो इनमें पहले सवाल का जवाब ये है कि अरावली चट्टानों में खनिजों का विशाल भंडार मौजूद है. केन्द्र सरकार के मुताबिक अरावली की चट्टानों में 81 तरह के खनिज हो सकते हैं, जिनमें 57 खनिजों को आज भी निकाला जा रहा है। इनमें Zinc, सीसा, चांदी, Cadmium और संगमरमर के साथ ग्रेनाइट का पत्थर भी निकाला जाता है. आज अगर आप अपने घरों में ग्रेनाइट का पत्थर लगवाते हैं तो ये पत्थर अरावली के पहाड़ों से ही खनन करके निकाला जाता है. और राजस्थान की सरकार को अरावली की पहाड़ियों का खनन करने से हर साल साढ़े 4 हजार करोड़ रुपये की आमदनी होती है और इससे आप ये समझ सकते हैं कि सबकी नजर अरावली की पहाड़ियों पर क्यों रहती है।
लोगों की नाराजगी की असल वजह
अब जब सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला आया तो बहुत सारे लोग और खासकर युवा इससे नाराज़ हो गए और उनका कहना ये है कि इस नई परिभाषा के कारण बहुत सारे अरावली के पहाड़ों को पहाड़ ही नहीं माना जाएगा और अरावली रेंज में बेहिसाब खनन शुरू हो जाएगा। इन लोगों का ये भी कहना है कि इस नई परिभाषा की वजह से अरावली के 90 प्रतिशत पहाड़ खत्म हो जाएंगे क्योंकि इन पहाड़ों की ऊंचाई 100 मीटर से ज़्यादा नहीं है।
अब ये बात पूरी तरह गलत भी नहीं है. अक्टूबर 2024 में Forest Survey of India की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें ये बताया गया था कि राजस्थान के कुल 15 ज़िलों में अरावली के 12081 पहाड़ हैं, जिसमें से सिर्फ 1048 यानी 8.7 प्रतिशत पहाड़ ही ऐसे हैं, जिनकी ऊंचाई 100 मीटर से ज़्यादा है. इसका मतलब ये हुआ कि अकेले राजस्थान में अरावली के 90 प्रतिशत से ज़्यादा पहाड़ों की ऊंचाई 100 मीटर से कम है और अब नई परिभाषा के कारण ये सारे पहाड़ खतरे में आ सकते हैं।
इसी बात को देखते हुए Forest Survey of India ने पिछले साल अपनी रिपोर्ट में एक सुझाव दिया था और वो सुझाव ये था कि 100 मीटर की जगह 30 मीटर या उससे ऊंचे ऐसे छोटे पहाड़ों पर खनन की इजाज़त नहीं देनी चाहिए, जिनकी ढलान 4.57 डिग्री या उससे ज़्यादा हो. अब इस सुझाव में तो 30 मीटर ऊंचे अरावली पहाड़ों को पहाड़ मानने की बात कही गई थी लेकिन केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय की सिफारिशों में इसे 100 मीटर कर दिया गया और आज इसी को लेकर विवाद हो रहा है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *