निगम अधिकारियों को हाईकोर्ट से मिली राहत, विशेष न्यायालय का संज्ञान आदेश रद्द
ग्वालियर एमपी हाईकोर्ट ग्वालियर बेंच की एकलपीठ ने नगरनिगम के अधिकारियों को बड़ी राहत दी है। न्यायालय ने विशेष सत्र न्यायालय द्वारा उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक प्रकरणों पर लिये गये संज्ञान को रद्द कर दिया। यह फैसला अधिकारियों के खिलाफ सरकारी मंजूरी के बिना शुरू की गयी कार्यवाही को अवैध ठहराता है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि मामले में शामिल सभी अध्किारी कानून लोक सेवक हैं। ऐसे में उनके खिलाफ किसी भी शिकायत पर कार्यवाही शुरू करने से पहले दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत सरकार की पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य था।
चूंकि इस मामले में ऐसी कोई अनुमति नहीं ली गयी थी। इसलिये विशेष सत्र न्यायालय द्वारा जारी संज्ञान आदेश को अधिकार क्षेत्र से परे और अवैध घोषित किया गया। न्यायालय ने यह भी कहा है कि अधिकारियों द्वारा की गयी। कार्यवाही उनके अधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन थी।इसे किसी भी तरह से निजी दुभावना नहीं माना जा सकता। हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि लोकसेवकों के विरूद्ध उनके आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन से जुड़े मामलों मे ंतब तक संज्ञान नहीं लिया जा सकता। जब तक शासन से पूर्व अनुमति न मिले। विशेष अदालत ने इस अनिवार्य कानूनी प्रावधान को पूरी तरह अन्दाज कर दिया था।
क्या है प्रकरण
मामला 2013 की घटनाओं से जुड़ा है। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि नगर निगम के अधिकारी खुले मांस व्यापार पर रोक लगाने पहुंचे थे। दुकान से जबरन बेदखल किया, नकदी ले ली और धमकाया। इस शिकायत के आधार पर विशेष न्यायालय ने आईपीसी की धारा 452, 392. 394, 323 तथा मप्र डकैत एवं व्यपहरण प्रभावित क्षेत्र अधिनियम की धाराओं 11 और 13 के तहत संज्ञान लिया था। इस फैसले के खिलाफ तत्कालीन निगमायुक्त वेद प्रकाश शर्मा, एन के गुप्ता, लोकेंद्र सिंह चौैहान, शशिकांत नायक एवं विक्रम सिंह ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए विशेष न्यायालय की कार्रवाई को निरस्त कर दिया। इससे फैसले से निगम अधिकारियों को बड़ी राहत मिल गई।
इन तथ्यों को न्यायालय के संज्ञान में लाया
1- शिकायतकर्ता को केवल चबूतरा आवंटित था, दुकानें नहीं, वह अनाधिकृत कब्जा कर दुकान में खुले मांस का व्यापार कर रहा था।
2- वर्ष 2000 और 2008 के उच्च न्यायालय के आदेशों में खुले मांस विक्रय रोकने का स्पष्ट निर्देशा। निगम की टीम ने बार-बार नोटिस दिये।
3- 17 मार्च 2013 का निगम ने रिकॉर्डेड पंचनामा के साथ कब्जा हटवाया। फिर शिकायतकर्ता ने दोबारा दुकान में घुसने का प्रयास किया।

