RSS स्वर साधक संगम -Gwalior स्वयं संगीत की धरा है, मन को शांत करने वाली कला है संगीत: सरसंघचालक
एक घराना तो ग्वालियर के से ही नाम प्रसिद्ध है
ग्वालियर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS )के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत (Dr. Mohan bagwat) ने कही कि संगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं मन को शांत कराने वाली कला है। सत्यम, शिवम, सुंदरम का दर्शन कराती हैं भारतीय कलाएं। सामूहिक संगीत में अगर किसी की त्रुटि हो जाए तो सबका वादन खराब हो जाता है। इसलिए किसी-किसी को बीच में कहा जाता है कि वह मुंह पर वाद्य लगाए रहे, बजाए नहीं, क्योंकि प्रत्येक वाद्य का अपना-अपना स्थान है। एक वादक का वादन महत्वपूर्ण है, समाज के अस्तित्व का भी यही नियम है। हम सागर के बिंदु हैं और सागर के बिना बिंदु का अस्तित्व अधूरा है। इसी तरह समाज में सबका सह अस्तित्व जरूरी है, उसको समाज भी मानता है और संगीत मनुष्य को उन्नत करता है। हम साधना करते हैं, उसका प्रदर्शन भी करते हैं लेकिन यह प्रदर्शन दिखावे के लिए नहीं होता। बल्कि उसको और अच्छा करने के लिए होता है। सरसंघचालक डॉ. भागवत रविवार को ग्वालियर में आयोजित मध्य भारत प्रांत के चार दिवसीय स्वर साधक संगम के समारोप अवसर पर बोल रहे थे। इस दौरान डॉ. भागवत ने राष्ट्रहित में समाज से संघ कार्य में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करने का आह्वान किया। मंच पर क्षेत्र संघचालक अशोक सोहनी, प्रांत संघचालक अशोक पांडे तथा विभाग संघचालक विजय गुप्ता उपस्थित रहे।
सरसंघचालक डॉ. भागवत ने कहा कि हमारा मानना है कि कच्छ की खाड़ी से कामरूप तक और कश्मीर से कन्या कुमारी तक समरसता का वातावरण बने। सामान्य लोगों के क्रियाकलाप होते हैं फैशन में चलना, आधुनिक वातावरण को ओढ़े रहना है। जो श्रेष्ठ होते हैं उनके आचरण का अनुसरण समाज करता है। समाज ठीक हो गया तो देश का भाग्य बदलता है। नेता, नारा आदि से परिवर्तन नहीं होता। अगर होता भी है तो कुछ समय के लिए होता है। हमारा मानना है कि बदलना है तो गुणवत्ता से, आचरण से बदलाव हो। अपने राष्ट्र को परम वैभव संपन्न राष्ट्र बनाने के लिए संपूर्ण समाज भागीदार बनेगा, ऐसा संघ का ध्येय है। कुछ ऐसे लोग होते हैं जो स्वयं कुछ नहीं करते, दूसरों को सुधारने का ठेका लेते हैं। हमारे समाज में भी यह आदत है कि स्वयं कुछ भले न करें लेकिन दूसरे में सुधार की उम्मीद करता है। जबकि जागृत रहकर स्वयं अपने भाग्य का निर्माण करने वाले समाज को अपने आप प्रभावित करते हैं। यही संघ की कार्यशक्ति है इसलिए संघ बना है। संघ को ठेका नहीं लेना है, संघ तो धर्म का संरक्षण करते हुए समाज को तैयार करने का कार्य कर रहा है।
ग्वालियर स्वयं संगीत की धरा है
एक घराना तो ग्वालियर के नाम से ही प्रसिद्ध है। पहले घोष वादन में ब्रिटिश संगीत पर आधारित रचना बजती थीं। बाद में भारतीय संगीत के आधार पर संगीत रचनाएं बनीं और वादन शुरू हुआ। संगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं है बल्कि हमारे यहां संगीत मन को शांति देने वाला है। मन को समअवस्था में लाने वाला है। सब बातों में सम रहना तथा समाज को जोडऩे के सारे गुण भारतीय संगीत में मिलते हैं। भारतीय संगीत में सुर निश्चित हैं और अनुशासन हैं। अनुशासन का पालन करना पड़ता है। इसको उत्कृष्ट करते हैं तो मन और बुद्धि शांत होती है और अनुशासन का पालन नहीं करते हैं तो मन विचलित होता है।
उन्होंने कहा कि देश का भाग्य बदलना आसान काम नहीं है, हम कई बार फालतू टीका-टिप्पणी में उलझ जाते हैं। जैसे हम आजादी 1947 में मिली लेकिन इसके लिए प्रयास 1857 से शुरू करना पड़े। हमारे ही घर में यह प्रयास चला कि हम विदेशियों से घर में ही हार गए। इस हार के कारण को जानने के लिए सामूहिक प्रयास हुए, जिसका फल 1947 में आजादी के रूप में मिला। संघ सबको जोड़कर, सबको मिलाकर काम कर रहा है और जरूरत पड़ी तो देश के लिए मरेंगे भी। ऐसे समाज का निर्माण संघ का उद्देश्य है। स्वतंत्र विचार के साथ देश का निर्माण, सबको अपना मानकर, सबको साथ लेकर चलने वाला समाज बनाना संघ का काम है।
घोष वादकों के जयघोष से गूंजा केदारधाम
चार दिवसीय शिविर में शामिल होने 31 प्रांतों से आए 550 से अधिक घोष वादकों के जयघोष से केदारधाम गूंज उठा। समारोप अवसर पर घोष वादकों ने विभिन्न रागों पर आधारित पांच रचनाएं ध्वजारोपणम्, भूप, मीरा, शिवरंजिनी तथा तिलंग का वादन किया। साथ ही उन्होंने रागों की कला का प्रदर्शन किया। जिसे देखकर शहरवासी गदगद हो गए। ग्वालियर में इस तरह का यह पहला अवसर है, इस तरह के स्वर साधक संगम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर प्रख्यात सरोद वादक अमजद अली खां, लेफ्टीनेंट जनरल अशोक सिंह, जस्टिम आरके सक्सेना, संगीत विवि के कुलपति प्रो. साहित्य कुमार नाहर, सितार वादक श्रीराम उमड़ेकर, नृत्याचार्य ईश्वरचन्द्र करकरे, डॉ. भगवानदास माणिक, अनीता ताई करकरे, जयंत खोत सहित अनेक संगीतज्ञ एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
संगीत साधकों से भारतीय संगीत के वैभव पर संवाद
सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने रविवार की सुबह संगीत साधकों से मुलाकात की। इस उन्होंने कहा कि भारतीय कला, संस्कृति, इतिहास व संगीत को सहेजने और विरासत को संजोने में मुख्य भूमिका समाज की रहती है। अगर समाज इस दिशा में जागरूक हो और उसमें मजबूत इच्छा शक्ति हो तो सरकारें भी उस पर गंभीरता से विचार करती हैं। डॉ. भागवत ने संगीतज्ञों से आव्हान किया कि वह भारतीय संगीत की समृद्ध विरासत को संजोकर तो रखें ही साथ ही इसको नई पीढ़ी तक पहुंचाने का भी काम करें। उन्होंने कहा कि यह काम बेहद जरूरी है और बड़े संगीत साधक इसमें प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। चर्चा के दौरान राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विवि के कुलपति प्रो. साहित्य कुमार नाहर, डॉ. सुनील पावगी, गायक जयंत खोत, बांसुरी वादक संतोष संत, श्रीराम उमड़ेकर, साधना गोरे, वीणा जोशी, संजय धवले, अभिजीत सुखदाणे आदि सहित अनेक संगीत साधक उपस्थित रहे।