कॉलेजियम पर मंत्रियों से बयान से नााखुश सुप्रीम कोर्ट, केन्द्र सरकार से कहा -कन्ट्रोल करें
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट में कॉलेजियम सिस्टम को लेकर लगातार सुनवाई जा रही है। गुरूवार को इस मामले में जब सुनवाई हुई तो कोर्ट केन्द्र से खासा नाराज दिखाई दिया। सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा है कि जब तक कॉलेजियम है। तब तक सरकार को भी उसे ही मानना होगा। केन्द्र सरकार इस बाबत अगर कोई कानून बनाना चाहती है तो बनाये, लेकिन कोर्ट के पास उनकी न्यायिक समीक्षा का अधिकार है। इस बात पर भी जोर दिया गया है कि सरकार में बैठे मंत्रियों को कॉलेजियम सिस्टम पर बयानबाजी करने से बचना चाहिये।
केन्द्र से क्यों नाराज हुआ सुप्रीम कोर्ट?
जस्टिस संजय किशन कौल ने गहा है कि सरकार कॉलेजियम की सिफारिशों को 2-2, 3-3 बार वापिस पुनर्विचार के लिये भेजती है। जबकि सरकार उस पुनर्विचार के पीछे कोई ठोस वजह भी नहीं बताती है। इसका सीधा मतलब तो यही है कि सरकार उनको नियुक्त नहीं करना चाहती है। यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना के खिलाफ है। जस्टिस कौल ने कहा है कि केन्द्र सरकार ने कॉलेजियम के भेजे नामों में से 19 नाम की फाइल वापिस भेज दी है। पिंगपॉन्स का यह बैटल कब सेटल होगा? जब हाई कोर्ट कॉलेजियम ने नाम भेज दिये और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने भी उनको अपनी मंजूरी दे दी तो फिर परेशानी कहा है? इस पूरी प्रक्रिया में कई कारण और आयाम होते हैं। कुछ नियम हैं। जस्टिस कौल ने कहा है कि जब आप कोई कानून बनाते हैं तो हमसे उम्मीद रखते हैं कि उसे माना जाये, वैसे ही जब हम कुछ नियम कानून बनाते हैं तो सरकार को भी उसे मानना चाहिये। अगर हर कोई अपने ही नियम मानने लगेगा तो फिर सब कुछ ठप्प पड़ जायेगा।
उन्होंने आगे यह भी कहा है कि आप कह रहे हैं कि अब तक मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर यानी एमओपी का मसला भी अटका पड़ा है। उस पर कोई काम आगे नहीं बढ़ा। आप कह रहे हैं कि आपने इस बाबत चिट्ठियां भेजी हैं। हो सकता है सरकार ने कुछ मुद्दों पर नजरिया साफ करने या बदलाव की गरज से लिखापड़ी की हों। एमओपी में बदलाव या सुधार की बात है। इसका मतलब कोई तो एमओपी है। ऐसा नहीं है कि कोई एमओपी है ही नहीं। एमओपी का मसला तो 2017 में ही निपट गया था। तभी तय हो गया था कि सरकार एमओपी में बदलाव या सुधार के सुझाव दे सकती हैं। कोर्ट उसमें समुचित सुधार करेगा। कोर्ट के इन तर्को पर अटॉर्नी जनरल ने कहा है कि हमें ऐसा नहीं जंचता। कुछ और फाइन ट्यूनिंग होनी जरूरी है। इस पर जस्टिस कौल ने कहा है कि सरकार सुझाव दे सकती है। लेकिन यह कॉलेजियम के ऊपर है। िकवह उसे माने या न माने। लेकिन हमारी चिंता आपके सुझाव के पैरा 2 को लेकर है। इसमें कहा गया है कि अनुच्छेद 224 को भी एमओपी का हिस्सा बनाया जाये। लेकिन पिछली सुनवाई मे ंतब के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सरकार के लिये समय मांगा था तो हमने न्यायिक आदेश के जरिये समय दे दिया था। उस आदेश में भी मौजूदा एमओपी का जिक्र हैं।