तिरंगा ग्वालियर के मध्यभारत खादी संघ में हो रहा है तैयार, कपड़े की टेस्टिंग से लेकर 5-6 दिन लगते हैं, आधे घंटे में राष्ट्रीय ध्वज की सिलाई होती है
ग्वालियर. राष्ट्रीय ध्वज तैयार करने से पहले तमाम कसौटियों से गुजरना होता है। सबसे पहले कच्चा माल सीहोर स्थित केन्द्रीय पोनी निर्माण (सीएफसी) पोनी यहां से खरीद कर लाई जाती है इसके बाद ग्वालियर, चांचोडा और तरीचर में सूत तैयार किया जाता है सूत तैयार करने के बाद बुनकर सूत से राष्ट्रीय ध्वज बनाने के लिये कपड़ा तैयार करते हैं। धागा (सूत) की थिकनेस, स्ट्रैन्थ और वजन चैक होने के बाद बुनकरों द्वारा कपड़ा तैयार होने के बाद ग्वालियर स्थित मध्य भारत खादी संघ की प्रयोगशाला में राष्ट्रीय ध्वज का कपड़ा चैक किया जाता हैं कहीं कपड़ा कटा फटा या कलर खराब नहीं है, कपड़े की प्रोसिंग करते हैं प्रोसिंग में मानकों के अनुसार कलर चैक किया जाता है। पूरे देश में राष्ट्रीय ध्वज मध्यप्रदेश के 2 वाई 3 के अनुपात में ग्वालियर, कर्नाटक की हुबली और महाराष्ट्र के बोरीवली में तैयार किया जाता है यह जानकारी मध्यभारत खादी संघ के अध्यक्ष वासुदेव शर्मा सचिव रमाकांत शर्मा ने दी।
बहुत कम लोग ये बात जानते हैं कि देशभर में फहराए जाने वाले कुल तिरंगों में से आधे ग्वालियर में बनाए जाते हैं। कई ऐतिहासिक और सैन्य इमारतों में और मंत्रालयों में ग्वालियर में बना ध्वज ही लहरा रहा है। यहां मध्य भारत खादी केंद्र में कारीगर दिन-रात झंडे तैयार करने में लगे रहते हैं। कई मानकों और कसौटी पर खरा उतरने के बाद ही हमारे देश का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा तैयार होता है। एक लॉट के कपड़े की रंगाई, छपाई, कटिंग और टेस्टिंग में 5 से 6 दिन तक लग जाते हैं। इसके बाद आधे घंटे एक झंडे की सिलाई में लगते हैं। तिरंगा तैयार होने में पांच घंटे का समय लगता है।
मुंबई, कर्नाटक के बाद अब ग्वालियर ने बनाई पहचान
कुछ समय पहले तक देश में झंडों की डिमांड मुंबई (महाराष्ट्र) और हुबली (कर्नाटक) से पूरी होती थी, लेकिन अब मध्यप्रदेश के ग्वालियर में मध्य भारत खादी संघ दोनों शहरों को टक्कर देने लगा है। समूचे उत्तर भारत में अब ग्वालियर में बने तिरंगे ही सप्लाई होने लगे हैं। इसके लिए खादी संघ ने नई मशीनें लगाई हैं। जहां लैबोरेटरी में टेस्ट करके 9 मानकों के आधार पर झंडे बनाकर सप्लाई किए जाते हैं। फिलहाल सालाना 64 से 65 लाख झंडे ग्वालियर में तैयार हो रहे हैं, जबकि कोविड से पहले 90 लाख से एक करोड़ तक तिरंगे यहां तैयार होते थे।
तार को बुनने से लेकर तिरंगा का रूप लेने में लगते हैं 6 दिन
खादी केंद्र की मैनेजर व टेक्नीशियन नीलू मैकले का कहना है कि किसी भी आकार के तिरंगे को तैयार करने में उनकी टीम को 5 से 6 दिन का समय लगता है। फिलहाल दोनों यूनिट में 26 जनवरी के लिए तिरंगा तैयार किया जा रहा है। यहां बनने वाले तिरंगे मध्यप्रदेश के अलावा बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात सहित एक दर्जन से अधिक राज्यों में पहुंचाए जाते हैं। गर्व की बात यह है कि देश के अलग-अलग शहरों में स्थित आर्मी इमारतों पर ग्वालियर में बने तिरंगे शान से फहराए जाते हैं।
9 मानकों को ध्यान में रख कर तैयार होता है तिरंगा
ग्वालियर मध्य भारत खादी संघ में BIS (भारतीय मानक ब्यूरो) प्रमाणित तीन साइज के तिरंगे तैयार किए जाते हैं, जिनमें 2 बाई 3, 6 बाई 4, और 3 बाई 4.5 फीट के झंडे शामिल हैं। राष्ट्रध्वज बनाने के लिए मानकों का ख्याल रखना होता है, जिसमें कपड़े की क्वालिटी, रंग और चक्र का साइज बहुत जरूरी है। उसके बाद खादी संघ में इन सभी चीजों का टेस्ट किया जाता है। कुल 9 मानकों को ध्यान में रखते हुए हमारे राष्ट्रीय ध्वज तैयार किए जाते हैं। जिनमें कपड़े का वजन, क्वालिटी, Ph वैल्यू, कलर, कैमिकल, सिलाई आदि प्रमुख हैं।
ऐसे बनता है एक कपड़ा तिरंगा
यहां तिरंगा झंडा निर्माण का काम धागा बनाने से शुरू होता है। इसके बाद बुनाई और फिर तीन तरह के लैबोरेटरी टेस्ट किए जाते हैं। टेस्टिंग के बाद इसकी फिनिशिंग और कलरिंग की जाती है। तीन रंगों का अलग-अलग ड्राइंग भी किया जाता है। इसके बाद फिर टेस्टिंग होती है और उसके बाद अशोक चक्र लगाया जाता है। तब जाकर खादी का कपड़ा, धागा और रंग समेत तिरंगा की शक्ल लेते हैं।
सन् 1925 से शुरू हुई थी यात्रा
ग्वालियर में स्थित इस केंद्र की स्थापना साल 1925 में चरखा संघ के तौर पर हुई थी। साल 1956 में मध्य भारत खादी संघ को आयोग का दर्जा मिला। इस संस्था से मध्य भारत की कई प्रमुख राजनीतिक हस्तियां भी जुड़ी हैं। उनका मानना है कि किसी भी खादी संघ के लिए तिरंगे तैयार करना बड़ी मुश्किल का काम होता है, क्योंकि सरकार की अपनी गाइडलाइन है उसी के अनुसार तिरंगे तैयार करने होते हैं।यही कारण है कि जब यहां तिरंगे तैयार किए जाते हैं तो बारीकी से उनकी मॉनिटरिंग की जाती है। कड़े परीक्षण और कई दौर की जांच के बाद मध्य भारत खादी संघ को BIS से तिरंगा बनाने की अनुमति 2016 में मिली थी। जिसके बाद अब ग्वालियर देश का तीसरा सबसे बड़ा झंडा निर्माण केंद्र बन गया है।
भारतीय मानक ब्यूरों से दिया जाता आईएसआई
मध्यभारत खादी संघ के सचिव रमाकांत शर्मा ने बताया कि जो राष्ट्रीय ध्वज को तैयार होने के बाद भारतीय मानक ब्यूरो के द्वारा राष्ट्रीय ध्वज को आईएसआई ट्रैड मार्क दिया जाता है।
अशोक चक्र को 160 डिग्री सेल्यिस पर तपाते है
मध्यभारत खादी संघ के अध्यक्ष वासुदेव शर्मा ने बताया झण्डा मानक के अनुरूप बाजार में नहीं बिक रहे हैं। उन्होंने नागरिकों से अपील की है झंडा संहिता का पालन हो, ध्वजारोहण के समय नियमों का पालन हो। राष्ट्रीय ध्वज पर चक्र ऐसे ही प्रिंट कर दिया जाता है। जबकि हमारे यहां राष्ट्रीय ध्वज पर स्क्रीन पिं्रट करने के बाद चक्र 160 डिग्री सेल्यिस पर तपाया जाता है जिससे कलर फेट या भदरंग न हो, राष्ट्रीय ध्वज भले फट जाये लेकिन अशोक चक्र का रंग कभी फैट नहीं होता है।
राष्ट्रीय ध्वज का साइज 2 वाइ 3 के अनुपात
ग्वालियर के मध्य भारत खादी संघ में राष्ट्रीय ध्वज का साइज 2 वाइ 3 के अनुपात तैयार किया जाता है राष्ट्रीय ध्वज तैयार होने के बाद ध्वज की सिलाई चैक की जाती है निर्माणकर्त्ता राष्ट्रीय ध्वज को ध्वज की प्रयोगशाला मानकों के अनुरूप है कि नहीं ध्वज की फिनिंश के बाद ही बाजार में आता है।