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डायबिटीज बीमारी पर शिक्षा से वंचित करना गलत-हाईकोर्ट

ग्वालियर. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच की एकलपीठ ने एक मामले में यह फैसला सुनाते हुए कहा है कि ‘‘किसी भी छात्र को बीमारी या दिव्यांगता के आधार पर शिक्षा के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है’’ दरअसल, लक्ष्मीबाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फिजीकल एज्यूकेशन (एलएनआईपीई) ने एक छात्र को टाइप-1 डायबिटीज की वजह से बीपीएड (बैचलर ऑफ फिजीकल एज्यूकेशन) में प्रवेश रोक लगा दी थी। इसी केस में सुनवाई हुई और हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया।
सभी टेस्ट पास करने के बाद प्रवेश रोका
एलएनआईपीई ने बीपीएड कोर्स में प्रवेश के लिये लिखित परीक्षा, शारीरिक परीक्षण और स्किल टेस्ट आयोजित किये थे। प्रज्ञांश ने सभी टेस्ट पास कर लिये। 8 अगस्त 2025 को उसे आवंटन पत्र भी मिला था। इसके बावजूद मेडीकल टेस्ट में टाइप-1 डायबिटीज का हवाला देते हुए प्रज्ञांश को प्रवेश नहीं दिया गया। छात्र. ने हाईकोर्ट में दलील दी कि वह जिला और राज्यस्तर की बैडमिंटन प्रतियोगिताओं में भाग ले चुका ळें कोर्स की सभी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हैं। न्यायालय ने उसकी दलील मानते हुए कहा हैकि केवल डायबिटीज के आधार पर उसे अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा- छात्रों को सुविधाएं देना जिम्मेदारी
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि साधारण भारतीय भोजन जैसे दाल, चावल, रोटी, सब्जी और दही डायबिटिक मरीजों के लिए पर्याप्त और उपयुक्त हैं। छात्र अपने मिनी-फ्रिज में इंसुलिन रख सकता है, जिससे संस्थान पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा। यह मामला नौकरी का नहीं, बल्कि शिक्षा तक पहुंच के अधिकार का है। संस्थान को उचित सुविधाएं (रीजनेबल एकमोडेशन) प्रदान करनी होंगी, ताकि कोई भी छात्र बीमारी या विकलांगता के कारण शिक्षा से वंचित न हो।
क्या है टाइप-1 डायबिटीज?
टाइप-1 डायबिटीज एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम गलती से अपने ही पैंक्रियाज की इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं को नष्ट कर देता है। यह बीमारी आमतौर पर बचपन या किशोरावस्था में सामने आती है और मरीज को जीवनभर इंसुलिन पर निर्भर रहना पड़ता है।
डायबिटीक मरीजों की प्यास बढ़ जाती है
डायबिटीज में मरीजों का ब्लड शुगर लेवल जब ज्यादा हो जाता है, तो मरीज जल्दी थक जाते हैं। इसका कारण उनके शरीर में एनर्जी की कमी होना है। डायबिटीज के मरीजों को बार-बार पेशाब आती है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब आपका ब्लड शुगर लेवल ज्यादा होता है, तब किडनी ब्लड से ज्यादा शुगर फिल्टर करने की कोशिश करती है। ज्यादा पेशाब के कारण शरीर को ज्यादा पानी की जरूरत पड़ती है। इसलिए मरीजों की प्यास बढ़ जाती है। कई मामलों में इससे लोगों में पानी की कमी होने लगती है।

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