ध्वनि के साथ शहर में बड़ रहा वायु व जल प्रदूषण

ग्वालियर. शहर में ध्वनि के साथ जल व वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। क्योंकि शहर की आबादी भी तेजी से बढ़ रही है। इससे निर्माण कार्य से लेकर वाहनों की संख्या बढ़ रही है। शहर में वाहनों की हर साल बढ़ोत्तरी हो रही है। ध्वनि प्रदूषण से निपटन के लिए,नगर निगम, पुलिस व प्रशासन का ढीला रवैया इसे बढ़ावा दे रहा है। बुधवार, गुरुवार के अंक में बताया कि शहर में वाहनों से होने वाला शोर निर्धारित मापदंड से कहीं अधिक है। जिसको लेकर विशेषज्ञों का कहना था कि बढ़ते शोर से कई तरह की बीमारियां का खतरा बढ़ता है। शहर में वाहनों का दबाव बढ़ता जा रहा है।

ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम के लिए कोई अभियान भी नहीं चलाया
वाहनों में तेज होर्न के लिए लोग प्रेशर हार्न तक लगवा रहे हैं। जिनसे 100 डेसीबेल या इससे अधिक तक आवाज पहुंचती है। यातायात पुलिस हर तिराहे, चौराहे पर वाहनों की चैकिंग भी करती, लेकिन कभी वह ध्वनि प्रदूषण को लेकर वाहनों के प्रेशर हार्न नहीं जांचती। ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम के लिए कोई अभियान भी नहीं चलाया जाता। मानसिक परेशानी के साथ सुनने की क्षमता काे कम करता है। वाहनों की आवाज और उनमें लगे कानफोडू हार्न शहरवासियों के लिए परेशानी का कारण बन रहे हैं। यह शोर बच्चें से लेकर बड़ों तक में तनाव बढ़ा रहा है। लेकिन नियमों का ठेंगा दिखाते हुए प्रतिबंधित क्षेत्रों में वाहन चालक प्रेशर वाले हार्न बजाकर निकल जाते हैं।

यातायात पुलिस,परिवहन और प्रशासन के जिम्मेदार मूक दर्शक बने हुए हैं। गजब की बात यह है कि प्रतिबंधित क्षेत्रों में नो हार्न संबंधित बोर्ड तक दिखाई नहीं दे रहे हैं। उससे भी गजब बात यह है कि ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण कौन करेगा खुद जिम्मेदारों को नहीं पता। यातायात डीएसपी नरेश अन्नोटिया का कहना है कि वह चालानी कार्रवाई तक सीमित है पर जांच ताे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड करेगा। जबकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी एचएस मालवीय साफ कर चुके है कि ध्वनि प्रदूषण रोकने की जिम्मेदारी पुलिस व प्रशासन की है। शहर के हालात यह हैं कि शिक्षण संस्थान,अस्पताल,सरकारी संस्थाएं और न्यायालय को शांत क्षेत्र में माना गया पर यहीं अधिक शोर मापा गया है। नियमानुसार इन संस्थानों के 100 मीटर के दायरे में किसी तरह का ध्वनि प्रदूषण प्रतिबंधित है। इसके बाद भी इन स्थानों के आसपास 90 डेसीबेल तक शोर दर्ज किया गया जबकि 40 से 50 डेसीबेल से अधिक नहीं होना चाहिए। लेकिन जिम्मेदारों के कानों तक यह शोर नहीं पहुंच पा रहा है।

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