कृषि क्षेत्र में विश्व का प्रमुख अंतरराष्ट्रीय कीट-टिड्डी डॉ. एसएन उपाध्याय
ग्वालियर टिड्डी कृषि क्षेत्र में विश्व का एक प्रमुख कीट है, जो विश्व के कई देशों में महामारी के रूप में समय अन्तराल में प्रकट हो जाता है। यह कीट, कीट विज्ञान की फायलम आर्थोपोडा क्लास इन्सेटा आर्डर आरथोप्टेरा एवं फेमिली एक्रीडिडी का प्रमुख कीट है। विश्व में कृषि की विभिन्न फसलों में नुकसान पहुंचाने वाले ग्रासहापर (टिड्डा)े की 5000 विभिन्न प्रजातियों में से एक प्रजाति है जो कि दो अवस्थाओं में पायी जाती है। ये अवस्थायें एक (सोलिटरी) एवं सामूहिक अवस्थायें (ग्रीगेरियस) कहलाती हैं। टिड्डी की नौ प्रजातियों की वैज्ञानिकों ने पहचान की है। इन नौ प्रजातियों में तीन प्रजातियां भारतीय भूभाग पर अक्सर प्रकोप करती हैं। यदि आर्थिक विष्लेषण किया जावे तो लगभग विश्व में 30 मिलियन डालर का नुकसान टिड्डी दलों से प्रत्येक वर्ष होता है।
टिड्डियों की तीन प्रजातियां
रेगिस्तानी टिड्डी (सिस्टोसिरका ग्रीगेरिया) – ये टिड्डियां कृषि क्षेत्र की फसलों एवं अन्य पेड-पौधों को अत्यधिक नुकसान पहुंचाती है। इनके झुंड पश्चिमी इरान एवं पूर्वी अरेबियन क्षेत्रों में प्रजनन कर बनते हैं सर्दियों एवं बसंत ऋतु में स्वार्म बनने के बाद ये मई से जुलाई में पाकिस्तान व पश्चिम भारत वर्ष में प्रवेश करते हैं।
माइग्रेटरी टिड्डी (लोकस्टा माइग्रेटोरिया)- इन टिड्डियों का प्रजनन बसंत ऋतु में बलुचिस्तान में होता है। इनके वयस्क भारतवर्ष के रेगिस्तानी इलाकों में जाकर नुकसान पहुंचाते हैं तथा वही गर्मी के मौसम में प्रजनन कर अण्डे देते हैं।
बाम्बे लोकस्ट (पतंगा सक्सीनेटा)- ये टिड्डियां भारतवर्ष, श्री लंका एवं मलेशिया में पायी जाती हैं। भारतवर्ष में विशेषकर महाराष्ट्र, गुजरात एवं राजस्थान की हरियाली को नष्ट करती हैं।
रेगिस्तानी टिड्डियां दो अवस्थाओं में पाई जातीं हैं
सोलेटरी फेज – इस अवस्था में टिड्डी के बच्चे (निम्फ) अलग-अलग रंगों में दिखाई देते हैं। इनका रंग
ग्रीगेरियस फेस-इनके बच्चे (निम्फ) पीले अथवा गुलाबी रंग के होते हैं। वयस्क टिड्डी का रंग पंख बनने के समय गुलाबी एवं धीरे-धीरे भूरे रंग में परिवर्तित हो जाता है एवं अन्त में पीले रंग में परिवर्तित हो जाता है जबकि इनके शरीर में जननांग पूर्ण विकसित हो जाते हैं।
वातावरण में रेगिस्थानी टिड्डियां दो समूह में पायी जाती हैं। एक समूह झंुड (स्वार्म) के रूप में होता है जिनके वयस्क पंख वाले होते हैं। दूसरा समूह बेण्डस के रूप में होता है जिनमें शिशु बच्चे (निम्फ) होते हैं जो लगभग 1000 स्कवायर कि.मी. क्षेत्र पर प्रकोप करते हैं।
टिड्डियों का प्रबंधन
मादा टिड्डी जब 500-1500 अण्डे रेतीली भूमि में देती है और अण्डे से निकलने के पश्चात् शिशु निकलते हैं जिन्हें निम्फ कहते हैं, इन पर किसानों को समय-समय पर निगरानी रखते रहना चाहिए।
अण्डे से निकलने वाले बेण्ड्स जिनमें शिशु अवस्था होती है, ये झुण्ड के रूप में काफी बडे क्षेत्र को कवर करते हैं। इन पर निगरानी एवं नियंत्रण के उपाय करते रहना चाहिए।
टिड्डी दल टिड्डी की प्रत्येक अवस्था जैसे अण्डे, शिशु तथा वयस्क अवस्था को नियंत्रित करना चाहिए।
अण्डों को नष्ट करने के लिए भूमि पर हल बक्खर चलाना चाहिए।
अण्डे दिये हुए स्थान के चारों तरफ एक गहरी खाई जिसकी गहराई 45 सेमी हो तथा चौडाई 30 सेमी हो, खोदनी चाहिए।
इन शिशुओं को जो झाडियों में रात्रि में छिपे रहते हैं उनको किसी भी साधन से जलाकर नष्ट करना चाहिए।
जिन खेतों में टिड्डियों का प्रकोप हो, वहां पर पॉव्इजन बेड्स को डालना चाहिए। इन पॉव्इजन बेड्स में डाईक्लोरवास 76 ईसी, 1.250 लीटर $ 100-150 किग्रा रेत प्रति हेक्टर के हिसाब से अथवा गेहूं का भूसा 10 किग्रा$गुड 2.5 किग्रा$ क्लोरपाइरीफास 20 ईसी 100 मिली $ पानी को प्रकोपित स्थान की चारों ओर एवं खेत में बिखेरना चाहिए।
टिड्डी दलों के वयस्कों को कांटेदार झाडियों के द्वारा भी मारा जा सकता है।
फेनबेल रेट 20 ईसी 0.02 प्रतिशत (1 मिली प्रति लीटर पानी की दर से) खेतों में छिडकाव करें।
अन्य कीटनाशकों जैसे क्लोरपाइरीफास 20 ईसी 1200 मिली या डेल्टामेथ्रीन 1.25 प्रतिशल यूएलवी 1400 मिली अथवा लेमडासायहेलोथ्रिन 5 प्रतिशत ईसी 400 मिली प्रति हेक्टर के हिसाब से छिडकाव करें।