चारधाम यात्रा की सड़क बनाने के लिये 56 हजार पेट काटे और 36 हजार काटे जायेंगे
देहरादून. पिछले लोकसभा चुनाव से पूर्व पीएम नरेन्द्र मोदी की एक तस्वीर वायरल हुई थी, पीएम एक गुफा के अन्दर बैठकर ध्यान करते हुए दिखाई दिये थे। तस्वीर उत्तराखण्ड के केदारनाथ की थी। जिस गुफा में मोदी बैठे थे वह कभी सन्यासियों की हुआ करती थी। केदारनाथके विधायक मनोज रावत बताते हैं कि लगभग 20 वर्ष पूर्व तक भी इस गुफा में एक माई निवास करती थीं, जो सांसरिक जीवन त्याग चुकी थी।
जिस गुफा मोदी ने तपस्या की अब उसकी दो माह की वेटिंग
केदारनाथ का अब पूरा इलाका ऐसे बाजार में बदल चुका है जहां इस गुफा की भी एडवांस बुकिंग होने लगी है। इस गुफा में अब बिजली की व्यवस्था है, बिस्तर लगा हुआ है, गर्म पानी के लिये गीजर और साथ ही एक अटैच टॉयलेट बाथरूम बना दिया है। पीएम मोदी की तस्वीर वायरल होने के बाद से इस गुफा में रहने वाले पर्यटकों की संख्या इतनी बढ़ गयी है। कि लोग दो -दो माह पहले ही इसकी बुकिंग करवाने लगे हैं। हिमालय के केदारनाथ जैसे ऊंचे पर्वतीय इलाकों में इस तरह के निर्माण और इंसानी दखल खतरनाक हैं। लेकिन ऐसे निर्माण बड़े स्तर पर हो रहे हैं।
ईआईए असेसमेंट से बचने के लिये चार परियोजना को 53 हिस्सों में बांटा
पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं का आरोप है कि चारधाम परियोजना को पूरा करने के लिये सरकार ने तमाम नियम-कायदों की अनदेखी की है। इसमें सबसे बड़ा आरोप है कि ईआईए यानी एन्वॉयरनमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट से बचने के लिये एक परियोजना कोकई छोटी-छोटी परियोजनाओं में बांटा गया है। 100 किमी से लम्बी किसी भी परियोजना के लिये ईआईए अनिवार्य होता है, ईआईए के नियम परिभाषित नहीं है, बल्कि इसके तहत केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय विशेषज्ञों द्वारा यह जांच करवाता है कि किसी बड़ी परियोजना का पर्यावरण पर क्या असर पड़ सकता है, ईआईए के बाद अगर पर्यावरण मंत्रालय अनुमति देता है, तभी ऐससी कोई परियोजना शुरू की जा सकती हैं।
सरकार अपने ही नियम भूल गयी
सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गयी हाईपॉवर कमेटी के सदस्य हेमंत ध्यानी ने बताया है कि इस परियोजना के लिये सरकार ने सिर्फ एक यही चालाकी नहीं की है 2018 में सड़क एवं परिवहन मंत्रालय ने ही सर्कुलर जारी किया था कि पहाड़ों में सड़कों के डामर वाला हिस्सा ( ब्लैक टॉप ) 5.5 मीटर ेस अधिक चौड़ा नहीं होना चाहिये, लेकिन चारधाम परियोजना में इस नियम को भी तोड़ दिया गया और सड़क के ब्लैक टॉप की चौड़ाई10 मीटर तक कर दी गयी हैं।
नई पर्वत शृंखला में पहाड़ों और पेड़ों को बड़ी मात्रा में काटा जा रहा है
इतनी चौड़ी सड़क बनाने के लिए दुनिया की सबसे ऊंची और सबसे नई पर्वत शृंखला में पहाड़ों और पेड़ों को बड़ी मात्रा में काटा जा रहा है। इसके लिए अब तक 56 हजार से ज्यादा पेड़ काटे जा चुके हैं और 36 हजार के करीब पेड़ मार्क किए गए हैं, जिन्हें और काटा जाना है। जानकार मानते हैं कि असल में काटे गए पेड़ों की संख्या इससे काफी ज्यादा है क्योंकि इसमें वे पेड़ शामिल नहीं हैं, जो पहाड़ काटने के दौरान उसके साथ गिर गए या इस परियोजना के कारण हुए भूस्खलन की चपेट में आ गए।
तीन हाईवे में 161 जगह जमीन दरक चुकी
हेमंत ध्यानी बताते हैं, ‘इस परियोजना के तहत बन रहे तीन हाईवे में 161 जगह जमीन दरक चुकी है। इसका ट्रीटमेंट सालों तक होता रहेगा, फिर भी पहाड़ों का दरकना बंद नहीं होगा। चारधाम प्रोजेक्ट के चलते हो रहा लैंडस्लाइड कई लोगों की जान भी ले चुका है। इसमें तीन लोग तो एक ही परिवार के थे, जिनका घर ऋषिकेश के पास हुए लैंडस्लाइड के मलबे में दब गया। इसी प्रोजेक्ट के कारण रुद्रप्रयाग के चंडीधार में भी आठ लोग एक साथ मलबे की चपेट में आने से मौत के मुंह में चले गए थे। इनमें उमा देवी भी शामिल थीं जो इस परियोजना के खिलाफ खुद एक याचिकाकर्ता थीं।
चारधाम परियोजना की मौजूदा स्थिति यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने इसके तहत बन रही सड़क के ब्लैक-टॉप को 5.5 मीटर तक ही चौड़ा रखने के निर्देश दिए हैं, लेकिन इस निर्देश के आने तक पहले चरण में बन रही कुल 662 किलोमीटर सड़क में से 537 किलोमीटर सड़क को 12 मीटर चौड़ा बनाने के लिए काटा जा चुका था। अब सरकार इसी बात को आधार बनाकर बाकी बची सड़क भी उतनी ही चौड़ी रखने की मांग कर रही है।
दूसरी तरफ, पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि सड़क की चौड़ाई 5.5 मीटर से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए, क्योंकि खुद सड़क-परिवहन मंत्रालय के सर्कुलर के अनुसार इतनी चौड़ी सड़क पर आठ हजार वाहन प्रतिदिन जा सकते हैं और भारी से भारी वाहनों के लिए यह पर्याप्त है। इन लोगों का कहना है कि जहां सड़क का कटान हो भी चुका है, वहां भी ब्लैक-टॉप 5.5 मीटर ही रखा जाए और बाकी जगह पर पेड़ लगाए जाएं और फुटपाथ बनाए जाएं। चारधाम यात्रा के लिए कई लोग पैदल आते हैं, जिनके चलने के लिए फिलहाल कोई अलग जगह नहीं है।
हेमंत ध्यानी कहते हैं, ‘चारधाम की अपनी अहमियत है। लोगों के लिए इन धामों के दर्शन सुलभ होने चाहिए। इसके लिए सरकार को यह करना चाहिए था कि इन धामों को जोड़ने वाली सड़क जहां संकरी थी या जहां मरम्मत की जरूरत थी, वहां काम किया जाता, लेकिन पूरी 900 किलोमीटर की सड़क के लिए पहाड़ों को एकतरफा काट देना हिमालय से खिलवाड़ है।’ वे आगे कहते हैं, ‘जब सड़क इस पैमाने पर चौड़ी की जाती है या नई बनती है तो उसके लिए बड़े-बड़े स्टोन क्रशर और हॉट मिक्स प्लांट भी लगते हैं। इस तरह के हॉट मिक्स प्लांट कई ऐसी जगह भी लगा दिए गए हैं, जो ग्लेशियर्स के बहुत नजदीक हैं। इनका प्रदूषण ग्लेशियर्स को कितना नुकसान पहुंचा रहा है, इसका तो अभी आकलन भी नहीं किया गया है।’
पर्यावरण कार्यकर्ता कहते हैं, ‘ये पहाड़-पर्वत और ये धाम उत्तराखंड के लिए सोने के अंडे देने वाली मुर्गी की तरह हैं। सरकार मुर्गी को मारकर सारे अंडे एक साथ निकाल लेने की सोच रही है। ये संवेदनशील इलाके हैं, जिनकी अपनी क्षमताएं हैं। इन पर बांध भी बनाए जा रहे हैं, पेड़ और पहाड़ भी काटे जा रहे हैं। जिन बुग्यालों में रात को कैम्पिंग के लिए छोटे-छोटे टेंट तक लगाने की मनाही है, वहां सरकार बड़े-बड़े पूंजीपतियों को शादी के शामियाने लगाने की अनुमति दे रही है। मुनाफा कमाने के लिए प्रकृति को ताक पर रख दिया गया है। ये परियोजना असल में चार-धाम परियोजना नहीं, बल्कि चार-दाम परियोजना है।’